आज़ाद भारत का एक फैसला और मनाने लगे हिंदी दिवस
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दुनियाभर में हिंदी के विकास के लिए कई प्रयास किए जा रहे है। हिंदी हमारी मातृभाषा है ये बात तो हम सभी जानते हैं लेकिन धीरे-धीरे हमारी मातृभाषा हिंदी का पतन होता जा रहा है हमारी हिंदी आज हिंग्लिश में बदलती जा रही है। अक्सर हम लोग अंग्रेज़ी को ज्यादा तवज्जो देते है। हमारी ऐसी धारणा है कि अगर हम अंग्रेजी में बोलेंगे तो हमारा लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। लोग हमें पढ़ा लिखा समझेंगे। शायद यही कारण है कि आज हिंदी की उपयोगिता हमारी बोलचाल में कम हो गई है।
क्यो मनाया जाता है हिंदी दिवस
14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है कि हिंदी दिवस क्यो मनाया जाता है? भारत की मातृभाषा हिंदी होते हुए भी हम बोल-चाल में सही तरीके से हिंदी नही बोल पाते है। बोल-चाल में हिंदी का पतन होता जा रहा है। हिंदी को देश में राज्यभाषा का दर्जा प्राप्त है फिर भी शायद हम हिंदी को सही तरीके से बोलने में सकुचाते है। हिंदी का इतिहास तो सदियों पुराना है लेकिन हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है ये हम आपको बताते है।
ये बात सन 1918 की है जब देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। गांधीजी ने हिंदी को लेकर कहा था कि ‘‘हिंदी जनमानस की भाषा है।’’ तभी से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर पहल शुरू हो गई थी।
अब आपके मस्तिष्क पटल पर एक सवाल ज़रूर आया होगा कि 14 सितंबर को ही क्यो हिंदी दिवस मनाते है तो हम आपको बता ही देते हैं कि क्यो 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते है।
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने इस बात पर निर्णय लिया था कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादिन करने और हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में इस दिन हर साल हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में दर्शाया गया है कि संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था। इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। लेकिन जब राजभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा।
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वर्ष 1991 में इस देश में नव-उदारीकरण की आर्थिक नीतियां लागू की गई। इसका जबर्दस्त असर भाषा की पढ़ाई पर भी पड़ा। अंग्रेजी के अलावा किसी दूसरे भाषा की पढ़ाई समय की बर्बादी समझा जाने लगा। जब हिन्दीभाषी घरों में बच्चे हिन्दी बोलने से कतराने लगे, या अशुद्ध बोलने लगे तब कुछ विवेकी अभिभावकों के समुदाय को थोड़ा थोड़ा एहसास होने लगा कि घर-परिवार में नई पीढ़ियों की जुबान से भाषा के उजड़ने, मातृभाषा उजड़ने लगी है। लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। आज बच्चे स्कूलों में हिंदी और अंगेजी दोनों में पढ़ाई कर रहे हैं। उनमें किसी भी भाषा का अभाव नहीं है। अभाव है बस तो एक बात का कि दोनो भाषाएं आपस मे घुल-मिल गई है।