इन जगहों पर खेली जाती है अनोखी होली
होली रंग और उमंग का त्योहार है। इसके साथ आने वाली खुशियां हम भूल नहीं पाते। यह भाईचारे का पर्व है जो जिंदगी में खुशियों के रंग घोल देता है। क्या आप जानते हैं कि भारत में कई जगहें ऐसी हैं जहां होली एक अलग अंदाज में खेली जाती है। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं उन जगहों के बारे में जहां खेली जाती है अनोखी होली…
काशी : श्मशान की भस्म से खेलते हैं होली
श्मशान का नाम सुनते ही कुछ लोगों के मन में डर पैदा हो जाता है। इस स्थान पर कोई होली खेलने की हिम्मत कैसे कर सकता है? लेकिन ये बात सच है और वाराणसी में हर साल होली का पर्व अपने अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। यह शहर है बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी। यहां श्मशान में होली खेलने की एक खास परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। जहां लोग रंग-गुलाल लगाकर होली का उत्सव मनाते हैं, यहां मणिकर्णिका घाट पर लोग चिताओं की भस्म से होली खेलते हैं। इस दौरान भगवान शिव के जयकारे और हर-हर महादेव के नारे गूंजते रहते हैं। लोग एक दूसरे को भस्म लगाते हैं और उल्लास से होली खेलते हैं।
ब्रज : यहां होती है लठमार होली
यहां होली का रंग बसंत पंचमी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक ब्रज के कण-कण में छाया रहता है। ब्रज में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से हो जाती है। इसके बाद बरसाने की गोपियां घूंघट की ओट से नंदगांव के हुरिहारों पर लाठियों की बौछार करतीं हैं। हुरिहारे इन प्रहारों को रसिया गा-गाकर अपनी ढालों पर रोकते हैं। नंदगांव की होली के बाद अगले दिन पूरे ब्रज में एकादशी का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
हमीरपुर : केवल महिलाएं खेलती हैं होली
उत्तर प्रदेश में हमीरपुर के कुन्डरा गांव में एक अनूठी परंपरा का निर्वाह करते हुए पुरूष होली से परहेज करते हैं मगर महिलाएं रंगों से सराबोर हो जमकर होली का लुत्फ उठाती हैं। होली में रंग खेलने के दिन गांव के पुरुष सदस्य रोजमर्रा की तरह खेती किसानी का कामकाज निपटाते हैं जबकि बालक साफ सुथरे घरों में रहते है। इस दिन पूरे गांव की महिलाएं रामजानकी मंदिर में एकत्र होती है और फाग गाने के बाद धूमधाम से होली खेलती है।
बरेली : यहां होती है अनोखी रामलीला
उत्तर प्रदेश के बरेली महानगर के बीचों बीच मोहल्ला बमनपुरी की पुरपेंच गलियों में होली के इस मौसम में डेढ सौ से ज्यादा सालों से एक अनोखी रामलीला का मंचन किया जाता है। मुस्लिम संतों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से 1861 में स्थानीय नागरिकों ने होली के बढते हुडदंग को रोकने और उसे एक धार्मिक माहौल देने के लिए यह रामलीला शुरु की थी। यह रामलीला हर साल फाल्गुन शुक्ल नवमी को प्रारम्भ होकर चैत्र कृष्ण द्वादशी तक आयोजित की जाती है। इस रामलीला के दौरान खास फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन शहर से मुख्य बाजारों से होकर भगवान श्रीराम की बारात निकाली जाती है। इस श्रीराम बारात के साथ ठेलों पर रंग भरे ड्रम लेकर चल रहे लोग एक दूसरे को सरोबार करते हैं।
अमरपुर : इस दिन नहीं निकलते घर से बाहर
होली के दिन जब पूरा देश रंगों की दुनिया में डूबा रहता है, तब कोरिया जिले के अमरपुर गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा रहता है। ऐसा नहीं है कि यहां होली नहीं मनाई जाती। एक पुरानी मान्यता के चलते यह गांव होली के पांच दिन पहले ही इस त्यौहार को मना लेता है। गांव में होली पर रंग नहीं खेलने के पीछे की मान्यता दिलचस्प और कई रहस्यों से भरी है। गांव के अधीन सिंह का कहना है कि यह गांव श्रापित है। पुराने समय से यह मान्यता है कि होली के दिन कोई भी गांव वाला रंग या गुलाल किसी दूसरे को लगाएगा तो वो रंग अनिष्ट कर देगा। लोगों का यह भी मानना है कि व्यक्तिगत रूप से भी क्षति हो सकती है।
उदयपुर, सोलापुर : पत्थर बरसाकर खेलते हैं होली
राजस्थान के उदयपुर में होली के दिन लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। परंपरा के नाम पर वहां हर साल ये खेल होता है। यहां ये खूनी खेल सालों से चला आ रहा है लेकिन प्रशासन को इसकी कोई फिक्र नहीं है। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र के सोलापुर में भी होली के दिन का नजारा कुछ ऐसा ही होता है। यहां लोग होली के दिन एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं। इस होली में दर्जनों लोग घायल हो जाते हैं।
सेमरा : 5 दिन पहले मना ली जाती है होली
सदियों से छत्तीसगढ़ रहस्यों और अबूझ पहेलियों का पिटारा रहा है। यहां का एक गांव भी इस धारणा को पूरी तरह चरितार्थ करता है। इस गांव का अनोखापन यह है कि यहां सभी प्रमुख त्योहार तय तिथि से एक सप्ताह पहले मना लिए जाते हैं। यह गांव है धमतरी जिले का सेमरा (सी)। इस गांव में काफी जमाने से चार प्रमुख त्योहार हफ्ते भर पहले ही मना लेते हैं। ये त्योहार हैं- होली, पोला, हरेली और दिवाली। प्रचलित लोक-संस्कृति और परंपरा के अनुसार यहां त्योहारों को हफ्ते भर पहले इसलिए मनाया जाता है, ताकि ग्राम देवता प्रसन्न रहें। यही कारण है कि इस साल सारा देश जहां होली का त्योहार जहां 23 मार्च को मनायेगा, इस गांव में यह पर्व 18 मार्च को ही मना लिया जाएगा।
मालवा : यहां होता है भगोरिया उत्सव
भगोरिया मध्य प्रदेश के मालवा अंचल (धार, झाबुआ, खरगोन आदि) के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है। भगोरिया हाट-बाजारों में भील समाज के युवक-युवती बेहद सज-धज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूंढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो लड़की की हां समझी जाती है। इसके बाद लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है और दोनों विवाह कर लेते हैं। इसी तरह यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है
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