जानिए क्या है क्यूरेटिव पिटिशन, जिससे माफ हो सकती है सुप्रीम कोर्ट की सजा
कुछ ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप के मामले में अपना फैसला सुनाया जिसमें आरोपियों की सजा को बरकरार रखा गया है। उन्हें फांसी की सजा दी गई है। वैसे तो भारत में सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च है और इसके फैसला ही अंतिम तथा सर्वमान्य है लेकिन एक रास्ता और भी है जहां से इन आरोपी मौत की सजा से बच सकते हैं, इसे क्यूरेटिव पिटिशन कहते हैं।
क्यूरेटिव पिटिशन एक ऐसी टर्म है जो न्यायलय और कानून की भाषा में काम में आती है यह कोई पुरानी टर्म नहीं है क्योंकि यह संविधान से नहीं आती है बल्कि न्याय प्रणाली में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले के दौरान इस तरह की अवधारणा को रखा गया जिसमें न्याय के आदेश को गलत क्रियान्वयन से बचाने के लिए या फिर उसे दुरूस्त करने के लिए क्यूरेटिव पिटीशन की धारणा को शुरू किया गया ताकि शीर्ष कोर्ट से किसी भी तरह की गलती होने की गुंजाइश कम से कम हो जाए।
क्यूरेटिव पिटीशन को हम यूं भी समझ सकते हैं कि जब किसी व्यक्ति को मौत की सजा सुनाई जाती है तो उसके पास ऑप्शन होता है कि वो अपनी सजा में नरमी की गुहार लगाने के लिए राष्ट्रपति को अपनी दया याचिका भेज सकता है या सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका को दायर करवा सकता है।
लेकिन किसी भी वजह से अगर राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में पुर्नविचार याचिका खारिज कर दी जाती है तो सके पास केवल एक ही रास्ता होता है सजा में नरमी की गुहार लगाने के लिए कि वो क्यूरेटिव पिटीशन दायर कर सकता है। इसलिए हम केवल कह सकते हैं कि न्याय प्रणाली में केवल क्यूरेटिव पिटीशन ही आखिरी रास्ता हे जिससे मुजरिम अपनी सजा को कम करवा सकते हैं अगर यह भी खारिज हो जाती है तो फिर उसके लिए सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं।
आमतौर पर यह देखा जाता है कि राष्ट्रपति की दया याचिका खारिज करने के बाद कोई भी मामला खत्म हो जाता है लेकिन कुछ मामलों में अपवाद स्वरूप यह होता है कि कोर्ट दया याचिका खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोट्र ने क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने की मांग स्वीकार कर सकता है।
जैसे कि याकूब मेनन के मामले में हुआ था। साल 2002 में रूपा अशोक हुरा मामले की सुनवाई के दौरान इस पिटीशन की अवधारणा हुई। उस समय पूछा गया कि क्या ऐसा हो सकता है कि जिससे सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद किसी आरोपी को राहत मिल सकती है।
नियम के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति रिव्यू पिटीशन डाल सकता है लेकिन सवाल ये पूछा गया कि अगर रिव्यू पिटीशन भी खारिज कर दिया जाता है तो क्या किया जाए? तब सुप्रीम कोर्ट अपने ही द्वारा दिए गए न्याय के आदेश को ग़लत क्रियान्वन से बचाने के लिए या फिर उसे दुरुस्त करने लिए क्यूरेटिव पिटीशन की धारणा लेकर सामने आयी। जिसके जरिये सुप्रीम कोर्ट अपने ही द्वारा दिए गये फैसलों पर पुनर्विचार के लिए राजी हो गयी।
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