आधार नहीं निराधार : मूक-बधिर बिछड़े बच्चे को अपनों से मिलाया
क्या आप भी अभी तक यही समझते थे कि आधार कार्ड का उपयोग सिर्फ सरकारी सुविधाओं के लिए हो सकता है? आधार कार्ड का इस्तेमाल हम आमतौर पर पहचान पत्र के रूप में करते हैं। बैंकिग लेनदेन, पेंशन, मनरेगा, इनकम टैक्स, जन वितरण प्रणाली और अन्य सरकारी कामों में इसका उपयोग करते हैं। लेकिन इतना ही आपका एक साधारण सा आधार कार्ड बिछड़ों से मिला भी सकता है। आधार कार्ड के कारण ही महाराष्ट्र के लातूर का रहने वाला एक बच्चा तीन साल बाद अपने परिवार से मिल सका है। 14 साल का यह बच्चा जन्म से ही बोल-सुन नहीं सकता है।
जी हाँ, यह सही है! आमतौर पर पहचान पत्र के तौर पर प्रयोग में आने वाला आधार कार्ड घर से बिछड़े एक बच्चे की जिंदगी में संजीवनी की तरह साबित हुआ, जिसकी सहायता से वह अपने घरवालों से वापस मिल गया। परिजनों से बिछड़कर गुजरात के नर्मदा पहुंचा 12 वर्षीय मूक-बधिर संजय नागनाथ येन्कुर अगर आधार कार्ड बनवाने के लिए नहीं जाता तो जिंदगी में कभी भी महाराष्ट्र के लातूर जिले में अपने घर वालों से नहीं मिल पाता।
भटकते हुए 800 किमी दूर पहुंचा
सुनने और बोलने में असमर्थ संजय ने 2014 में अपने भाई विजय से झगड़ा होने के बाद महाराष्ट्र लातूर जिले में अपने गांव हेन्चल को छोड़ दिया था। वह भटकते हुए अपने घर से 800 किलोमीटर दूर गुजरात में पहुंच गया। चूँकि वह बोल और सुन नहीं सकता था इसलिए कोई भी उसे वापस उसके घर पहुँचाने में मदद नहीं कर पाया. दोनों भाईयों संजय और विजय के मां-बाप की मौत 2011 में हो चुकी थी और वे अपनी मौसी संगमाबेन मानेकराव गांटे के पास रह रहे थे।
नाम आकाश रखा और 2री में ड़ाल दिया
वडोदरा रेलवे पुलिस ने पिछले वर्ष 22 मार्च को संजय को अकेले घूमते पाया। मूक-बधिर होने की वजह से उसके परिवार के बारे में पता करने का प्रयास असफल रहा। इसके बाद उसे नर्मदा जिले के राजपिपला में बाल सुरक्षा आयोग द्वारा संचालित मूक-बधिर सरकारी स्कूल में भेज दिया गया। नर्मदा जिले के बाल सुरक्षा अधिकारी चेतन परमार ने बताया, ‘हमने पहले तो उसके घर के बारे में उससे कुछ जानकारी लेना चाही, लेकिन कोई परिणाम नहीं मिला। फिर हमने उसका नाम आकाश रखा और उसका एडमिशन 2री क्लॉस में करवा दिया।’
आधार ने उजागर की उसकी असली पहचान, स्वजनों का सानिध्य मिलेगा
जनवरी 2017 में स्कूल में लगा आधार रजिस्ट्रेशन कैंप संजय के लिए नई लाइफ लेकर आया। UIDAI सर्वर के साथ सभी बच्चों का फिंगरप्रिंट और रेटिना स्कैन कराया गया, लेकिन आकाश का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका। आधार वेबसाइट चेक करने पर पता चला कि 2011 में संजय नागनाथ येन्कुर के नाम से उसका रजिस्ट्रेशन पहले ही हो चुका है।परमार ने बताया कि हम लातूर जिले में अपने सहयोगियों से संपर्क कर उनसे सभी प्रमाणपत्रों की जांच करने को कहा। जिसके बाद संजय के घर का पता चल सका। उसे जल्द ही अपने स्वजनों का आजीवन सानिध्य प्राप्त हो सकेगा। नेक्स्ट पेज पर देखिये – क्यों दे रहे हैं मोदी इतना जोर
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