तो हो सकती है यूपी में कांग्रेस की जीत पक्की
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दांव-पेंच खूब चल रहे हैं, आखिर चले भी क्यों न? अगले साल विधानसभा चुनाव के लिए घमासान जो होना है। हर पार्टी अपना पूरा जोर लगा रही है, ताकि किसी भी तरह से देश के इस सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव में फतह हासिल कर सके। आम लोगों के बीच भी चुनाव को लेकर चर्चाएं हैं, आखिर उन्हें अगले 5 साल के लिए अपने प्रदेश की जिम्मेदारी किसी एक दल के हाथ जो देनी है।
कांग्रेस की अगर बात करें तो विधानसभा चुनाव 2017 को लेकर कांग्रेस भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसी के चलते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी वाराणसी में रोड शो करने पहुंची हैं। इस रोड शो की सबसे खास बात ये रही कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के लिए सोनिया की सुरक्षा में ढील दी गई। कार्यकर्ता एसपीजी के बावजूद सोनिया के काफी करीब तक आते रहे। जाहिर है कि सोनिया 2004 के बाद पहली बार वाराणसी गई हैं तो इस बार उनकी पूरी कोशिश मोदी के लहजे में ही वाराणसी का दिल जीतने की है। इसके लिए कांग्रेस की रणनीति भी तगड़ी है।
ये है शीला की ताकत
राज बब्बर को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित को कांग्रेस ने सीएम के चेहरे के लिए पेश किया है। गौरतलब है कि शीला दीक्षित का उन्नाव और कन्नौज से गहरा नाता रहा है। वे अपने आप को यूपी की पुत्रवधू भी बताती हैं। वे कन्नौज से एक बार सांसद भी रह चुकी हैं।
प्रियंका की छवि से होगा फायदा
वैसे प्रियंका की उत्तर प्रदेश में काफी समय से मांग चल रही है लेकिन इस बार शीर्ष नेतृत्व ने गंभीरता से विचार करते हुए प्रियंका को चुनाव प्रचार अभियान समिति की कमान सौंपने का फैसला किया है। प्रियंका गांधी में लोग इंदिरा गांधी का अक्स देखते हैं। उनका चेहरा और बॉडी लैग्वेंज इंदिरा गांधी से बहुत मिलते हैं। यकीनन, आज भी महिलाओं, खासतौर से ग्रामीण महिलाओं से प्रियंका गांधी के बारे में पूछेंगे तो यही जवाब आएगा कि बिल्कुन अपनी दादी पर गई है। अब प्रशांत प्रियंका की ’दादी जैसी’ छवि को भुनाने में कामयाब रहते हैं तो कांग्रेस का पलड़ा भारी हो सकता है।
राहुल की छवि में हो रहा सुधार
लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में हुई कांग्रेस की रैली में उम्मीद से ज्यादा भीड़ देखी गई। वहां लोग राहुल की एक झलक पाने को, उन्हें सुनने के लिए बेताब थे और राहुल गांधी खुद भी एक गंभीर नेता के रूप में दिखाई दिए। खास बात ये थी कि कार्यकर्ताओं में सभी वर्गों के लोग थे जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस अपने पुराने वोट बैंक को कुछ हद तक वापस लाने में कामयाब हो रही है।
ये है वोट बटोरने की रणनीति
कांग्रेस ने वोट बटोरने की पूरी तैयारी कर ली है। 18 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं पर पकड़ बनाने के लिए गुलाम नबी आजाद को आगे लाया गया है, जबकि 8 फीसदी ठाकुरों को साधने के लिए अमेठी राज घराने के संजय सिंह को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। वहीं राज बब्बर पिछड़े वर्ग से वोट बटोरते नजर आएंगे। इस रणनीति को देखकर कहीं से भी नहीं लगता कि कांग्रेस चुनावी रणनीति में कमजोर दिखती है। यह बात दीगर है कि राज्य में वह जनाधार खो चुकी है और उसी को हासिल करने के लिए वह प्रयत्नशील है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर पार्टी ने राज्य के 11 फीसदी ब्राह्मण मतदाताओं को साधने का काम किया है, क्योंकि बीजेपी भाजपा ब्राह्मणों के बजाय दलितों को अधिक तरजीह देती दिखती है।
बीजेपी इसलिए पड़ेगी कमजोर
वहीं दूसरी ओर भाजपा लोकसभा की प्रचंड जीत के उन्माद में है। उसे लगता है कि बस नरेंद्र मोदी के नाम पर वोटर उसकी झोली भर देंगे। केंद्र में दो साल पूरे करने के बाद भाजपाई अगर जमीनी हकीकत का पता करने सड़कों पर निकलेंगे तो भाजपा को निराशा हो सकती है। लोकसभा की जीत का उन्माद अब उतार पर है। जब भाजपा चुनाव प्रचार में उतरेगी तो उसके लिए महंगाई पर जवाब देना मुश्किल होगा। इसमें दो राय नहीं कि महंगाई ने आम आदमी की जिंदगी पर गहरा प्रभाव डाला है। इसका असर निश्चित तौर पर भाजपा के उन वोटरों पर पड़ेगा, जो उसके परंपरागत वोटर नहीं रहे हैं।
जंगलराज पड़ेगा अखिलेश को भारी
अखिलेश सरकार रोज ही अपनी उपलब्धियों के अखबारों में चार से छह पेज तक के विज्ञापन दे रही हैं। टीवी पर भी विकास कार्यों का डंका पीटा जा रहा है। उन विज्ञापनों को आम लोग कितना पढ़ते-देखते होंगे, पता नहीं। लेकिन लोग यह जरूर पढ़ और देख रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर है। कोई दिन नहीं जाता, जब किसी जिले में लूट, डकैती और कत्ल की वारदातें न होती हों। अखिलेश सरकार ने प्रदेश में विकास कार्य जरूर कराए हैं, लेकिन अपराध विकास पर पानी फेर रहे हैं।