उरी अटैकः इतनी बेरहमी से आतंकियों ने लगा दी थी आग
बीते रविवार पाकिस्तान से आए 4 आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में मौजूद आर्मी बेस को अपना निशाना बनाया। इस आतंकी हमले में सेना के 17 जवान शहीद हुए थे। आपको बता दें कि उरी में सेना मुख्यालय में हुए आतंकी हमले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी के हाथ कुछ प्रमुश सुराग लगे हैं। एनआइए का मानना है कि चारों आतंकियों ने हमला करने से पहले एक रात ब्रिगेड मुख्यालय के ऊपर बनी पहाड़ी पर बिताई थी।
रसोई और स्टोर में बंंद कर लगा दी थी आग
खबरों के अनुसार आतंकियों ने हमले के दौरान दो इमारतों कुक हाउस (रसोईघर) और स्टोर रूम में बंद कर दिया था। ताकि उस जगह को आग लगने के वक्त जवान बाहर ना आ सकें। एनआइए को अंदेशा है कि आतंकियों के पास हमला करने से पहले अपने लक्ष्य के बारे में काफी जानकारियां थीं। चारों आतंकियों ने मुख्यालय परिसर के पश्चिमी छोर से सबसे पहले हमला करते हुए एक चौकीदार को गोली मारी। इसके बाद उनमें से तीन आतंकी जवान टेंट की तरफ बढ़ गए थे। वहीं चौथा आतंकी ऑफिसरों की मेस की तरफ बढ़ गया। एनआइए फिलहाल इस बात के पुख्ता सबूत एकत्र कर रही है कि आतंकी पाकिस्तान से आए थे। इसके लिए नष्ट हो चुके जीपीएस से डाटा निकालने की कोशिशें जारी हैं। इसके लिए राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) के इंजीनियर जीपीएस सेट से डाटा हासिल करने के प्रयास कर रहे हैं। ताकि दुनिया के सामने पाकिस्तान का असल चेहरा सामने लाया जा सके।
अंतिम संस्कार से पहले लिए गए फिंगरप्रिट
गौरतलब है कि इसके अलावा चारों आतंकियों का अंतिम संस्कार करने से पहले उनके फिंगरप्रिंट भी ले लिए गए थे। जरूरत पड़ने पर भविष्य में इनका भी इस्तेमाल किया जाएगा। बता दें कि एनआइए प्रमुख शरद कुमार मंगलवार को घटनास्थल पर पहुंच चुके हैं और उन्हें इस बात की पूरी जानकारी दी गयी कि किस तरह से आतंकियों ने हमले को अंजाम दिया था। आतंकियों ने जिन कैलशनीकोव राइफलों से किया था उन्हें भी आर्मी ने एनआइए को सौंप दिया है। उनपर अब तक तो कोई ऐसी पहचान नहीं मिली है जिससे उन्हें पाकिस्तान का माना जा सके। आर्मी के डीजीएमओ लें. जनरल रणबीर सिंह ने रविवार को पत्रकारों को बताया था कि हथियारों पर पाकिस्तान के निशान मिले है। हालांकि, आतंकियों के पास से मिली सूई, पेनकिलर, खाने पर पाकिस्तानी निर्माता कंपनी का नाम है।
आतंकियों द्वारा आईकॉम निर्मित जिस हैंडसेट का इस्तेमाल आतंकवादियों द्वारा किया गया था वहीं हैंडसेट जुलाई में कश्मीर से पकड़े गए बहादुर अली नाम के जिंदा आतंकी के पास से भी मिला था। इस हैंडसेट का इस्तेमाल आतंकी लश्कर-ए-तैयबा के मुख्य स्टेशन से बात करने के लिए करते थे। जिसका कोड नाम है अल्फा। आइकॉम को को एक उच्च तकनीक वाला वायरलैस उपकरण माना जाता है।