बिना फ्रिज में रखे भी कई महीनों तक ख़राब नहीं होता यह पैकेज्ड दूध
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दूध आम तौर पर ज्यादा दिनों तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता, वह जल्दी ख़राब हो जाता है. हम लोग जिस पैकेज्ड दूध का रेगुलर यूज़ करते हैं उसका प्रोसेसिंग यूनिट्स द्वारा पास्चराइजेशन किया जाता है, ताकि इसमें मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाएं और यह अधिक दिनों तक ख़राब ना हो. लेकिन ये दूध भी इतने ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता. फ्रिज में रखने के बावजूद ये कुछ ही दिनों में ख़राब हो जाता है.
आपको लग रहा होगा कि हम यह अजीब सी डिस्कस क्यों कर रहे है, वह इस लिए क्योंकि शायद आप जानते नहीं है कि पिछले 50-60 सालों से ऐसा भी एक पैक्ड दूध मार्किट में उपलब्ध है जो बिना फ्रिज में रखे भी कई महीनों तक ख़राब नहीं होता. वैक्स पेपर से बने पैकेट्स में बंद करके बेचे जाने वाले इस दूध को कई तरह के खास ट्रीटमेन्ट्स से गुजारा जाता है.
UHT दूध (Ultra Heat Treated Milk) अल्ट्रा हीट ट्रीटेड मिल्क
इस दूध को UHT या अल्ट्रा हीट ट्रीटेड मिल्क के नाम से बेचा जाता है. इसे खराब होने से बचाने के लिए जिस प्रोसेस से ट्रीट किया जाता है, उसके कुछ फैक्ट्स तो ताज्जुब पैदा करते हैं. इस प्रोसेस के कम्पेरिज़न में पास्चराइज़ेशन में काफ़ी वक़्त लगता है.
पहले जानें पास्चराइज़ेशन (Pasteurization) क्या है
पास्चराइज़ेशन का यह नाम, इसकी खोज करने वाले वैज्ञानिक लुई पास्चर के सरनेम पर पड़ा था. इसमें दूध को क़रीब पंद्रह सेकेंड तक 72 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है. फिर इसे ठंडा किया जाता है. इससे दूध के सभी बैक्टीरिया तो नहीं मरते. ख़ास तौर से वो बैक्टीरिया जो इंसान को नुक़सान नहीं पहुंचाते, वो नहीं मरते. इस दूध को फ्रिज में रखकर कुछ दिनों में इस्तेमाल करना होता है.अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में इस्तेमाल होने वाला ज़्यादातर दूध ऐसा ही होता है.
अब देखें UHT क्या है
लेकिन बहुत से यूरोपीय देशों में UHT दूध बेचा जाता है. इस दूध को दोगुने तापमान यानी 140 डिग्री सेल्सियस तक केवल 3 सेकेंड के लिए गर्म किया जाता है. बेहद अधिक तापमान की वजह से दूध में मौजूद सारे बैक्टीरिया मर जाते हैं. यानी गर्म करने से जो दूध मिलता है वो कीटाणुरहित होता है. इसे साफ-सुथरे पैकेट में बंद किया जाता है. जब तक पैकेट नहीं खोला जाता, ये दूध ख़राब हो ही नहीं सकता.
20 से 30 डिग्री सेल्सियस में स्टोर करने पर ही सेफ
इस दूध को भी अधिक पीरियड तक बचाए रखने के लिए इस पॉइंट को अमल में लाना होता है कि ये 20 से 30 डिग्री सेल्सियस में स्टोर करने पर ही सेफ रह सकता है. इसीलिए जब इसे पैक करके दूसरे देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है, तो कई बार ऐसा होता है कि भयंकर गर्मी की वजह से इसमें मौजूद कीटाणु के स्पोर या बीजाणु फिर से एक्टिव हो जाते हैं. ऐसी हालत में जब आप इसका पैकेट खोलते हैं, तो लगता है कि ये जेली या दही की तरह जम गया है.
गर्म करने पर मेललार्ड रिएक्शन (Maillard Reaction) होता है
इसकी वजह से दूध को गर्म करने से इसमें केमिकल रिएक्शन होता है. जब दूध को 140 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है, तो इसमें मौजूद प्रोटीन के थक्के बन जाते हैं. इसी तरह गर्म होने की वजह से दूध में ‘मेललार्ड रिएक्शन’ नाम का केमिकल रिएक्शन होता है. ये वही केमिकल रिएक्शन है जिससे कैरामेल, या भूनने से भूरे हुए टोस्ट का स्वाद स्वादिष्ट लगता है.
जब दूध को गर्म करते हैं तो इसमें मौजूद प्रोटीन और शुगर के बीच ‘मेललार्ड रिएक्शन’ होता है. कई एंजाइम भी बिखर जाते हैं. हालांकि बेहद जरूरी एंजाइम प्लाज़्मिन पर दूध को गर्म करने का असर नहीं होता. मगर ‘मेललार्ड रिएक्शन’ से सल्फर के कई रूप बनते हैं, जिससे ट्रीटमेंट के बाद दूध में हल्का गाढ़ापन और थक्के जैसे बनने लगते हैं. दूध से अंडे वाली बू आने लगती है. हालांकि एक हफ्ते में ये बू पूरी तरह से गायब हो जाती है.
गर्म होने के बाद प्लाज़्मिन एंजाइम सक्रिय हो जाता है. ये दूध में मौजूद प्रोटीन को कई हिस्सों में बांटने का काम करता है. जिससे वो एक दूसरे से चिपकने लगते हैं. इसी वजह से दूध में हल्के थक्के से पड़ जाते हैं. शायद ‘मेललार्ड रिएक्शन’ की वजह से ही UHT दूध में मिठास ज़्यादा होती है.
ये पास्चराइज़्ड दूध से ज़्यादा सफ़ेद भी होता है. शायद गर्म होने की वजह से दूध की व्हे प्रोटीन और दूसरी चीज़ें चमकने लगती हैं.सल्फ़र की वजह से दूध का स्वाद भी एकदम अलग लगता है.
चीन में भारी मांग
वैसे तो सबको ये UHT दूध पसंद नहीं आता. मगर, कई देशों के बाजारों में इसकी भारी मांग है. चीन में इस दूध की मांग 10 %सालाना की दर से बढ़ रही है. चीन की भारी मांग की वजह से ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और जर्मनी के डेयरी उद्योग काफ़ी फल-फूल रहे हैं.
इसका चीज़ बनाने में 11-12 घंटे लगते हैं
इस दूध की सबसे बड़ी कमी ये है कि इससे चीज़ नहीं बनाया जा सकता. वैज्ञानिकों ने कई बार इससे चीज़ बनाने की कोशिश की, मगर वो नाकाम ही रहे हैं.क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के हिल्टन डीथ कहते हैं कि अगर हम इसे ज़्यादा वक़्त देंगे तो शायद UHT दूध से चीज़ भी तैयार हो जाए, मगर उसमें 11-12 घंटे का वक़्त लग सकता है. रिसर्च से शायद ये वक़्त और कम किया जा सके. जिससे हम आगे चलकर अल्ट्रा हीट ट्रीटेड दूध से चीज़ बना सकें. मगर, इसमें आम चीज़ जैसा स्वाद शायद ही आए. तब तक हमें इस दूध के बाक़ी तरह के इस्तेमाल से ही तसल्ली करनी होगी.
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