काम के घंटे तो बढ़ना ही चाहिए
अभी हाल ही में हमारे चीफ जस्टिस श्री टी. एस. ठाकुर कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री मोदी की उपस्थिति में न्यायपालिका में जजों की कमी का मुद्दा उठाकर भावुक हो गए। ये बात बहुत छोटी सी है, हर ऑफिस स्टाफ की कमी की तरफ समय-समय पर ध्यान खींचता रहता है। किंतु इस संदर्भ में प्रधानमंत्री द्वारा जो बात कही गई है वह बहुत बड़ी बात है, जिस पर देश और मीडिया का ध्यान नहीं गया। प्रधानमंत्री ने कहा, कि स्टाफ की कमी है तो काम के घंटे बड़ा दिये जाएं। निश्चित तौर पर यह हमारे देश की, देश के विकास की विशेष जरूरत है क्योंकि हम काम ही नहीं करना चाहते हैं, बस छुट्टियां ही चाहते हैं। हमें कब और कितनी छुट्टियां मिल रही हैं या मिल सकती हैं उस पर ही फोकस रहता है। देश में काम का माहौल ही नहीं है फिर हम विकसित कैसे हो पाएंगे।
बात न्यायपालिका की करें तो इतने केसेस पेंडिंग हैं कि यदि नये केसेस लेना बंद भी कर दिए जाएं तो पुराने केसेस को खत्म करने में ही 35 साल गुजर जाएंगे, तो बताएं काम कैसे होगा। एक ही केस को कई वर्ष लग जाते हैं यही वजह है कि बदनियति वाले लोग इस बात का फायदा उठा लेते हैं इसी के चलते न्यायपालिका न्याय की नहीं अन्याय की तरफदारी करती प्रतीत होती है। सही न्याय पाने के लिए बरसों चक्कर लगाने पड़ते हैं तब तक कई समय के आगे हाथ टेकते नजर आते हैं और गलत व्यक्ति उसी बात का फायदा बेफिक्र होकर उठा लेते हैं।
काम के घंटे कम होने का असर हर क्षेत्र में है फिर चाहे सरकारी कार्यालय हो, काम कम रूकावट ज्यादा नजर आती है। इसी वजह से हमारे सरकारी तंत्र को लाल फीताशाही कहा जाता है। योजनाएं बनती हैं उत्साह से उसकी घोषणाएं भी की जाती है किंतु कार्यरूप में लाने में सालों-साल लग जाते हैं जिसका असर यह होता है कि वह योजना अपना असर खो देती है और उसकी लागत कई गुना बड़ जाती है। जब तक पूरी होती है तब तक उसकी उपयोगिता ही खत्म हो जाती है नयी करने का वक्त आ जाता है। निश्चित तौर पर कहें तो व्यक्तियों की कमी की वजह से नहीं अपितु काम के घंटे कम होने की वजह से होता है, हमारे काम ना करने की मानसिकता की वजह से होता है।
बात करें हम इसकी शिक्षा देने वाली सरकार की, उसके हालात भी अन्य से कम नही हैं, हमारी लोकसभा, राज्यसभा में अनगिनत बिल पास होने के लिए पड़े हैं किंतु वहां भी काम कम रूकावटें ज्यादा हैं। हंगामा करने के लिए पर्याप्त समय है किंतु काम के लिए समय नहीं है जरूरत है वहां भी काम के घंटे बड़ाए जाने चाहिए। सभी सत्रों में हंगामों के टाइम को काउंट ना कर, काम के घंटों को भी काउंट करना चाहिए, फिर भले ही वे पूरी रात काम करें। देश ने जिस काम के लिए उन्हें चुना है वो तो पूरा होना ही चाहिए।
काम ना करने की मानसिकता सिर्फ शासन-प्रशासन में ही नहीं है अपितु प्रायवेट सेक्टर में भी है। सभी को काम नहीं छुट्टियां चाहिए। ऐसा लगता है देश काम कम करता है छुट्टियां ज्यादा मनाता है। हर बात की, हर महापुरूष के नाम की छुट्टी चाहिए भले ही वे महापुरूष कर्मशील थे। कैसे होगा ऐसे हालत में देश का विकास? कैसे बनेगा हमारा देश विश्वगुरू? कैसे होंगे हम उन्नत? यह सब सोचने का विषय है। इस बात पर त्वरित विचार देश को, सरकार को करके निर्णय ले लेना चाहिए।
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