…तो इसलिए घट रही है बाघों की संख्या
बाघों के संरक्षण के केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के अथक प्रयासों के बावजूद देश में बाघों की होने वाली मौतों का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले 7 महीनों में देश में 41 बाघों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा 15 बाघ तमिलनाडु में और 14 मध्य प्रदेश में मरे हैं।
ये हैं बाघों के घटने का कारण
1. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 8 साल में बाघों का वन क्षेत्र 1803 वर्ग किमी घट गया। 2006 में यह 93,697 वर्ग किमी था और 2014 में 92,164 रह गया।
2. 1997 से 2002 के बीच पांच साल में ही देश में 28 टाइगर रिजर्व में से 21 में करीब 250 वर्ग किलोमीटर इलाका कम हो गया। इससे बाघों की ब्रीडिंग बुरी तरह प्रारभावित हुई।
3. बाघों की हड्डियों से दवाइयां बनती हैं। चीन, वियतनाम और म्यामांर जैसे देश इनके बड़े खरीदार हैं।
4. आनुवांशिक विविधता की कमी। इस पर मई 2013 में अपनी तरह की पहली रिपोर्ट आई थी। इसमें बाघ घटने का कारण उनके मेटिंग पार्टनर में वैरायटी न होना बताया गया।
5. सुरक्षित माने जाने वाले टाइगर रिजर्व रिहायशी बस्तियों के पास आते जा रहे हैं। इससे बाघों के रिहायशी इलाकों में घुसने और फिर मारे जाने के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
6. टाइगर रिजर्व के बाहर किसी के पकड़े जाने पर अधिकतम 3 साल की जेल और 25,000 रुपए जुर्माने का प्रावधान है। जबकि एक बाघ की हड्डियां ही 30 लाख में बिक जाती हैं।
7. राज्यों का खजाना भरने में इसकी अहम भूमिका है। सड़कें बनाने और पर्यटकों को दूसरी सुविधाएं देने के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं। बाघों के रहने की जगह कम हुई है और बाघ घट रहे हैं।
8. बढ़ते तापमान से बाघों के बीमार होने की आशंका बढ़ी। पारिस्थितिकी तंत्र ’इकोसिस्टम’ बिगड़ा। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2080 तक इकोसिस्टम क्लाइमेट चेंज की भेंट चढ़ चुका होगा।
9. 1973 में शुरू हुआ ’प्रोजेक्ट टाइगर’ बाघ संरक्षण का सबसे बड़ा प्रयास है, लेकिन 2010 तक 38 साल में बाघों की संख्या 1827 से घटकर 1000 रह गई। नई गणना भी सवालों के घेरे में है।
10. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल सरकार जो 101 कोल ब्लॉक नीलामी करने वाली है, उनमें से 35 बाघों के लिए संरक्षित इलाकों में हैं। सरकार की इच्छाशक्ति जाहिर है।