भारत में किडनी फेल्युअर के मामले हुए डबल, हर साल 2 लाख मरीजों को पड़ रही है डायलिसिस की जरूरत
भारत में किडनी फेल होने के मामलों में पिछले 15 सालों में दोगुनी वृद्धि हुई है। यही नहीं डायलिसिस कराने वाले मरीजों की संख्या में 10 फीसदी का इजाफा हुआ है। मुंबई के एसआरवी अस्पताल के कंसल्टेंट के अनुसार नेफ्रोलॉजिसट डॉ.राजेश कुमार के मुताबिक लगभग 75 हजार मरीज इस समय डायलिसिस पर हैं और उनकी संख्या सालाना 10 से 20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। एक अन्य रिसर्च के अनुसार किडनी के फेल होने का एक प्रमुख कारण हाई बीपी है और किडनी फेल होने के 27 प्रतिशत नए केसों के लिए जिम्मेदार है।
65 प्रतिशत लोगों को नहीं मिल पाता सही ट्रीटमेंट-
अब सवाल यह है कि क्या भारत में तेजी से बढ़ती किडनी के मरीजों की संख्या को संभालने के लिए संसाधन और विशेषज्ञ हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत स्वास्थ्य क्षेत्र पर जीडीपी का एक फीसदी खर्च करता है। जबकि चीन 3 फीसदी और अमेरिका 8.3 फीसदी खर्च करता है। पहले के आंकड़ों से पता चला था कि किडनी के रोग के शिकार 65 प्रतिशत मरीजों को समय पर डायलिसिस और ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता। डायबेटॉलॉजिस्ट डॉ.प्रदीप गाडगे के अनुसार किडनी के फेल होने का मुख्य कारण डायबिटीज की बीमारी है और अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में इसके 10 लाख मरीज डायलिसिसके कारण ही जिंदा हैं। उनका कहना है कि हर साल 2 लाख मरीजों को डायलिसिस की जरूरत होती है , लेकिन 10 प्रतिशत से भी कम मरीजों को यह उपलब्ध हो पाता है। क्योंकि इस पर आने वाले खर्च से लेकर उपलब्धता तक की समस्या है।
बीपी और किडनी में गहरा नाता-
बीपी को कंट्रोल करने में किडनी का अहम रोल है। इसलिए किडनी की किसी भी बीमारी से बीपी बढ़ जाता है। हाई बीपी के कारण ब्लड शिराएं सिमट जाती हैं, जिससे उनकी छानने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में किडनी शरीर से टॉक्सिन को पूरी तरह से निकालने में बेअसर हो जाती है। इसके कारण टॉक्सिन शरीर में जमा होता है और कई सारी बीमारियां जैसे हार्ट डिसीज, हड्डियों और फिट पडऩे जैसी बीमारियों को जन्म देती है।
देर से पता चलता है-
किडनी की बीमार के केस काफी देर से पता चलते हैं, तब तक ये अंग पूरी तरह से खराब हो चुका होता है। ज्यादातर मौकों पर मरीज को कोई भी लक्षण पता नहीं चलता है, जबकि किडनी अपनी आधी क्षमता पर काम कर रही होती है। किडनी फेल होने के मामलों में मरीजों को या तो हीमोडायलिसिस या कॉन्टीनुअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस की जरूरत होती है, ताकि किडनी के कामों का ऑप्शन मिल सके या किडनी ट्रांसप्लांट हो सके।
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