मंगल ग्रह पर कदम रखने वाली पहली इंसान बनेगी नन्हीं एलिसा
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नई दिल्ली। चंदा मामा को मुठ्ठी में कैद करने के लिए मचलने की उम्र में ‘लाल मामा’ की गोद में बैठने के सपने देखने वाली अमेरिका की नन्हीं एलिसा कार्सन अंतरिक्ष यात्रियों के जरुरी प्रशिक्षण के अलावा मंगल ग्रह की आबो हवा के अनुकूलन से संबंधित कई चुनौतीपूर्ण ट्रेनिंग कर चुकी है और यह सिलसिला जारी है। लुइसियाना के बैटन रूज की 15 वर्षीय एलिसा ने तीन साल की उम्र में अपनी ललाट पर लटक रहे सुनहरे ‘गुलदस्ते’को एक तरफ करते हुए पापा बर्ट कार्सन से सवाल किया था,“पापा, मंगल ग्रह पर कोई गया है क्या? ” उसके पापा ने भी उसी ‘गंभीर’ अंदाज में जवाब दिया,नहीं बेटा, मंगल पर तो नहीं ,इंसान चांद पर जरुर पहुुंच गया है। फिर क्या था , इसके बाद एलिसा का मंगल पर बस्ती बसाने का जुनून परवान चढ़ने लगा। वह मंगल पर कदम रखने वाले पहले लोगों में शामिल होने और इस ग्रह पर एक नयी दुनिया की नींव रखे जाने में अहम भूमिका निभाने के लिए ऐसे-ऐसे प्रशिक्षण से गुजर रही है जिसके बारे में इसके हमउम्रों ने सुना भी नहीं होगा। वह सपने नहीं बुन रही बल्कि‘मंगल की हकीकत’ जीने लगी है।
मंगल पर भारत की ऐतिहासिक पहल
अंग्रेजी,फ्रेंच, स्पैनिश एवं चायनीज भाषाओं में धारा प्रवाह बाेलने और लिखने वाली एलिसा ने विशेष बातचीत में उसके हिन्दी के ज्ञान के बारे में पूछे जाने पर कहा,“मंगल पर भारत की ऐतिहासिक पहल और अंतरिक्ष में इसकी महत्वपूर्ण दखल को देखते हुए मैं जल्द ही हिन्दी की कक्षाएं लेने वाली हूं। मुझे उस दिन का इंतजार है जब अपने मंगल मिशन के बारे में बताने के लिए मुझे भारत आमंत्रित किया जायेगा। वह मेरे लिए बेहद खुशी का पल होगा। फिलहाल मैं रुसी भाषा की शिक्षा ले रही हूं। ” ‘एस्ट्रोनॉट इन मेकिंग’कुछ -कुछ तुर्की और पुर्तगाली भी जानती है। एलिसा यह बखूबी जानती है कि एक बार मंगल पर जाने के बाद उसका धरती पर लाैटना शायद संभव नहीं होगा , फिर भी धरती से करीब 40 करोड़ किलोमीटर दूर मंगल पर पहुंचने की उसकी जिद अटल है।
भारत की ‘मंगल फतह’ने विश्व को हैरत में डाल दिया
उसके ही सपने जीने वाले बर्ट कार्सन ने अपने जज्बातों को गहरे समुद्र में ‘दफन’ करके ‘अंतरिक्ष बिटिया’ के सपने को साकार करने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया है। हम उसी मंगल ग्रह की बात कर रहे हैं जहां 24 सितंबर 2014 को मंगलयान के पहुंचने के साथ ही अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक नया इतिहास रच दिया और भारत पहले ही प्रयास में सफल होने वाला पहला तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया। सबसे कम बजट से भारत की ‘मंगल फतह’ने विश्व को हैरत में डाल दिया है जिस पर कुल खर्च 450 करोड़ रुपये आया। यह नासा के पहले मंगल मिशन का दसवां और चीन-जापान के नाकाम मंगल अभियानों का एक चौथाई भर है और यह अकादमी पुरस्कार विजेता फिल्म ‘ग्रैविटी’ पर आए खर्च से भी कम है।
कई भाषाओं की जानकारी होनी चाहिए
पड़ोसी ग्रह मंगल पर फूल-पौधे लगाने और कई तरह के अनुसंधान करने की बात करने वाली एलिसा के दिल में मंगल पर कदम रखने की ख्वाहिश तीन साल की उम्र में उस समय हिलोरे मारने लगी जब उसने बच्चों के टेलीविजन शो “ द बैकयार्डिगंस : मिशन टू मार्स” देखा। किसे पता था कि इस शो को देखकर बर्ट कार्सन की ‘मासूम एलिसा’ मंगल पर बसने का ‘कठोर’ एवं बेहद चुनौतीपूर्ण सपना देखने लगेगी, सपने को ओढ़ने, बिछाने और जीने लगेगी तथा खेलने-कूदने की मासूम उम्र से ही कड़ी ट्रेनिंग लेने लगेगी? वर्ष 2027 में मंगल पर इंसानों की कॉलोनी बसाने की तैयारी करने में जुटे संगठन ‘मार्स वन’ की एम्बेसडर एलिसा खुशी-खुशी बेहद मुश्किल प्रशिक्षण से गुजर रही है। बैटन रुज इंटरनेशन स्कूल की दसवीं की छात्रा ने यह पूछने पर कि वह इतनी भाषाओं पर क्यों अधिकार करना चाहती है, एलिसा ने झट से कहा, ‘‘आज से 20 साल बाद मैं जब मंगल पर जाऊंगी तो संसार के कोने-कोने से लोग मुझसे कई तरह के सवाल करेंगे और न जाने कितनी बातें करना चाहेंगे। मुझे कई भाषाओं की जानकारी होनी चाहिए कि नहीं?”
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