कोख के कारोबार को रोकेगा कानून
By Lokendra Singh
देश में कोख के अनैतिक कारोबार पर लगाम लगाने के लिए ‘सरोगेसी (नियमन) विधेयक, 2016’ के जरिए केन्द्र सरकार ने स्वागतयोग्य कदम उठाया है। पिछले कुछ सालों के दौरान भारत में ‘किराए की कोख’ (सरोगेसी) का धंधा जिस तरह बढ़ा है, उसने कई गंभीर प्रश्न और समस्याएं खड़ी हो गईं थीं। सरोगेसी पर स्पष्ट कानून नहीं होने से गरीब भारतीय महिलाओं का शोषण किया जा रहा था। यह चौंकाने वाला तथ्य है कि दुनिया में सरोगेसी के सर्वाधिक मामले भारत में हैं। प्रतिवर्ष विदेशी किराए की कोख से बच्चा हासिल करने के लिए बड़ी संख्या में भारत का रुख कर रहे थे। भारत में इस पद्धति से बच्चा प्राप्त करना उनके लिए बेहद आसान और सस्ता विकल्प है। उदाहरण के तौर पर समझें, अमेरिका में सरोगेसी के माध्यम से संतान प्राप्त करने का खर्चा 50 लाख रुपए से भी ज्यादा बैठता है, जबकि भारत में यह सुविधा सभी खर्चों को मिलाकर महज 10 से 15 लाख में प्राप्त की जा सकती है। वहीं, भारतीय महिलाएं नशा-पत्ता और माँसाहार से दूर रहती हैं, इसलिए विदेशियों की धारणा है कि भारतीय महिला की कोख से स्वस्थ और उत्तम बच्चे का जन्म होता है। यही कारण है कि विदेशी ग्रामीण और वनवासी क्षेत्र की महिलाओं की कोख को किराए पर लेना अधिक पसंद करते हैं। देश में फर्टिलिटी रिसर्च सेंटर के नाम पर खरपतवार की तरह उग आईं ‘दुकानें’ भारतीय महिलाओं के शोषण का बड़ा कारण बनती हैं। इस अनैतिक व्यापार में शामिल इस तरह की दुकानें गरीब और जरूरतमंद महिलाओं को पैसों का लालच दिखाकर उन्हें अपनी कोख में बार-बार बच्चा पालने और पैदा करने के लिए तैयार करती हैं। एक अनुमान के मुताबिक इन दुकानों के कर्ताधर्ता किराए की कोख उपलब्ध कराने के लिए विदेशियों से जितना पैसा लेते हैं, उसका आधा हिस्सा भी उन गरीब महिलाओं तक नहीं पहुंचता है। वर्तमान सरकार ने भारतीय महिलाओं के साथ हो रहे इस अमानवीय व्यवहार और शोषण को पहचाना है। नए कानून में विदेशियों के लिए देश में किराए की कोख की सेवाएं लेना प्रतिबंधित किया गया है।
वहीं, यह भी देखने में आ रहा है कि पश्चिम की जीवनशैली के प्रभाव में आकर अपनी ‘देह के आकर्षण’ को बचाए रखने के लिए कई महिलाएं स्वयं माँ नहीं बनकर औलाद के सुख के लिए किराए पर कोख ले रही हैं। खासकर,तथाकथित उच्च वर्ग में यह मानसिकता तेजी से पनप रहा है। यह मानसिकता भारतीय संस्कृति, पारिवारिक और सामाजिक संरचना के साथ ही जीवनमूल्यों के लिए भी घातक है। अभिनेता आमिर खान और उनकी पत्नी किरण राव ने संतान-सुख के लिए सरोगेसी पद्धती को ही अपनाया था। उनका बेटा आजाद राव सेरोगेसी पद्धती से जन्मा है। जबकि आमिर खान को उनकी पूर्व पत्नी से एक बेटी और एक बेटा पहले से हैं। इसी तरह, पहले से दो संतान होने के बाद भी अभिनेता शाहरुख खान ने भी सरोगेसी के जरिए तीसरी संतान (अब्राहम) प्राप्त की। यह लोग किस तरह की परंपरा समाज में बढ़ा रहे हैं। निश्चित ही इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक लगाए जाने की जरूरत महसूस हो रही थी। सरोगेसी जरूरतमंदों के लिए होनी चाहिए, जो चिकित्सकीय कारणों से संतान उत्पन्न कर पाने में असमर्थ हैं, न कि देह का आकर्षण बचाने वालों के लिए। ‘सरोगेसी (नियमन) विधेयक, 2016’ में इस बात का प्रावधान है कि अब संतान सुख प्राप्त करने के लिए उस दंपति को ही सरोगेसी का अधिकार होगा, जिनके विवाह को पाँच साल हो गए हों और डॉक्टर द्वारा प्रमाणित किया गया हो कि दंपति संतान को जन्म देने में सक्षम नहीं हैं। अगर किसी दंपति के पास पहले से बच्चा है तब वह सरोगेसी के जरिए बच्चा प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसी तरह सरोगेट मां बनने वाली महिला बच्चा चाहने वाले दंपति की करीबी रिश्तेदार ही हो सकेगी, जो बिना किसी राशि के सिर्फ एक बार ऐसा कर सकेगी।
इसके साथ ही गैर-विवाहित जोड़े, एकल अभिभावक और समलैंगिकों को भी सरोगेसी इस्तेमाल की इजाजत नहीं होगी। ‘सरोगेसी (नियमन) विधेयक, 2016’ में ऐसे अनेक प्रावधान किए गए हैं, जिनसे सरोगेसी के अनैतिक कारोबार पर रोक लग सकेगी। यह कानून सरोगेसी के जरिए बच्चा चाहने वालों का दायरा भी तय करता है। पैसों का लालच देकर गरीब महिलाओं की कोख खरीदने की मौजूदा शोषणकारी प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी। इस विधेयक में किराए की कोख वाली मां के अधिकारों की रक्षा के उपाए भी किए गए हैं। इसलिए केंद्र सरकार की सराहना की जानी चाहिए कि उसने महिलाओं, बच्चों और संपूर्ण समाज के हित में बेहतर कानून लाने का निर्णय लिया है।