ASFPA खत्म करने के लिए इरोम ने किया था 16 साल अनशन
कश्मीर घाटी में हो रही हिंसा इन भारत के लिए सिरदर्द बन चुकी है। आए दिन घाटी में किसी न किसी आम नागरिक और सैनिक की मौत होती रहती है। कुछ दिनों पहले हुई हिंसा के कारण पैलेट गन के प्रयोग पर भी रोक लगाने की बाते सामने आई। सैनिकों और नागरिकों की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई कानून और अधिनियम बनाए है। जिन्हें कभी तो पास कर दिया जाता है और कभी जिनके पास होने के बाद विरोध होता है। ऐसा ही एक कानून 11 सितंबर 1968 को भारत में पारित किया गया था। इस कानून का नाम था ‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून’।
इस कानून के पारित होने के बाद से ही इसे लेकर काफी विवाद और बहस हुई। इसके लागू होने के बाद से ही इस कानून की जरूरत और दुरूपयोग पर बहस शुरू हो गई थी। सरकार और कानून के विरोधियों के अपने-अपने तर्क हैं। इस कानून को लेकर ईरोम शर्मिला भी कई सालों तक अनशन पर रही। इस कानून को खत्म करने की मांग कई बार उठी लेकिन इसे अभी तक खत्म नहीं किया गया है।
इस कानून को 1968 में नागालैंड के कुछ भागों में लागू किया गया था। इसके कुछ समय बाद इसे असम में लागू किया। फिर इसे पूर्वोतर भारत के सात राज्यों में लागू किया गया। इसके बाद इसे जरूरत पड़ने पर अन्य राज्यों में भी लागू किया गया था।
यह कानून असम, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के संघ शासित क्षेत्रों में लागू है। वर्ष 1980 में पूरे मणिपुर क्षेत्र को अशांत घोषित करके इस विशेष कानून को लागू कर दिया गया था। हालांकि, अगस्त 2004 में मणिपुर सरकार ने इसे कुछ क्षेत्रों से हटा लिया था। पंजाब में भी अलगाववाद से निपटने के लिए यह कानून 1983 से 1997 तक लागू रहा। जम्मू-कश्मीर में जुलाई, 1990 में इसे लागू किया गया। तब इसे नियंत्रण रेखा से 20 किमी के इलाके में ही लागू किया गया था।
क्या है यह कानून?
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफ्सपा) 11 सितंबर, 1958 को संसद में सशस्त्र बलों की सुरक्षा के लिए पारित किया गया था। यह अशांत घोषित किए गए इलाकों में लागू है। इस कानून की धारा-4 के तहत सेना को कानून-व्यवस्था बहाल रखने के लिए बिना वारंट के उपद्रवी तत्वों की तलाशी, प्राणघातक होने की हद तक बल प्रयोग, तथा संपत्ति जब्त या नष्ट करने का अधिकार है। यह कानून किसी पर उचित संदेह होने की स्थिति में भी उसे गिरफ्तार कर उसके खिलाफ उचित कदम उठाने का अधिकार देता है। कानून की धारा-6 के तहत सेना के जवानों पर केंद्र सरकार की अनुमति बगैर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती और न ही अभियोजन चलाया जा सकता है।
कब-कहां लागू?
इरोम शर्मिला का अनशन
कुछ ही दिनों पहले अपना अनशन तोड़ने वाली ईरोम शर्मिला भी इसी कानून के विरोध में आमरण अनशन पर गई थी। दो नवंबर, 2000 के दिन इरोम शर्मिला इंफाल (मणिपुर) से 10 किमी दूर मालोम गांव के बस स्टॉप पर बस के इंतजार में खड़ी थीं। इसी दौरान सेना ने निहत्थे दस नागरिकों को उग्रवादी होने के संदेह में बंदूक चलाकर मार दिया। तभी से इरोम शर्मिला ने इस कानून के विरोध में अनशन किया था लेकिन सरकार ने इस ओर कोई इस कानून को लेकर कोई भी कार्यवाही नहीं की गई।
कानून के पक्षधरों का मानना
इस कानून को लेकर सरकार का मानना है कि यह कानून सिर्फ आतंरिक सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि बाह्य सुरक्षा के लिए भी लागू किया गया है। पाकिस्तान सहित अन्य पड़ोसी देशों से आने वाले आतंकियों को रोकने के लिए यह कानून प्रभावी है। सेवानिवृत्त मेजर जनरल जीडी बख्शी का कहना है कि पाकिस्तान में 42 में से 34 आतंकी ट्रेनिंग कैम्प सक्रिय हैं। इनमें 2000 से 2500 आतंकियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इनसे निपटने के लिए इस कानून की जरूरत है।
रोलेट एक्ट जैसा है सरकार का आफ्सपा
ये एक्ट भारत में अंग्रेजी शासनकाल के रोलेट एक्ट जैसा भी है। 1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट कमेटी की रिपोर्ट को क़ानून का रूप दे दिया। इस विधेयक में सरकार को राजनीतिक दृष्टि से संदेहास्पद व्यक्तियों को बिना वारंट के बन्दी बनाने, देश से निष्कासित करने, प्रेस पर नियन्त्रण रखने तथा राजनीतिक अपराधियों के विवादों की सुनवाई हेतु बिना जूरी के विशेष न्यायालयों को स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया गया था।
केन्द्रीय विधान परिषद के सभी सदस्यों द्वारा विरोध करने के बावजूद अंग्रेज़ सरकार ने रॉलेक्ट एक्ट पारित कर दिया। इस अधिनियम से सरकार को यह अधिकार मिल गया कि वह किसी भी व्यक्ति को न्यायालय में मुक़दमा चलाये बिना अथवा दोषी सिद्ध किये बिना ही जेल में बंद कर सकती है। इस अधिनियम से सरकार वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्थगित कर सकती थी। वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार ब्रिटेन में नागरिक अधिकारों का मूलभूत आधार था। इस एक्ट की तर्ज पर ही आफ्सपा में भी सैनिक किसी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर सकते है।
आफ्सपा को खत्म करने को लेकर कई व्यक्तियों ने आवाज़ उठाई, कई आंदोलन किए। लेकिन इस एक्ट को अभी तक खत्म नहीं किया गया। इस एक्ट के कारण कई बार आम नागरिक मारे जाते है जिनका कोई गुनाह नहीं होता है। इस एक्ट से जहां एक ओर आम नागरिक इसका दंश झेलते है वहीं दूसरी ओर ये सेनिको की सुरक्षा की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में अब सरकार ही जानती है कि इसे आगे किस मोड़ पर खत्म किया जाएगा।