आशा के अपनों ने नहीं ’संघर्ष’ ने दिया सारी ज़िंदगी साथ
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आशा भोंसले कैबरे सॉन्ग भी उतनी ही सहजता से गा लेती हैं, जितना कि भजन। आशा ने जब अपना करियर शुरू किया था, तब एक से एक दिग्गज गायिकाएं मौजूद थीं। उनके घर पर ही लता जैसी महान गायिका मौजूद हैं। आशा को तब फिल्म में एकाध कमजोर गाना गाने का अवसर मिलता था। इतनी कठिन चुनौतियां होने के बावजूद भी आशा ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया। लता जैसे विशाल वृक्ष के नीचे रहते हुए भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई।
हिंदी सिनेमा में यूं तो गायकों की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन सौ साल की हो चुकी इंडस्ट्री लता और आशा के गायन के बिना अधूरी है। लता ने जहां हिंदी सिनेमा में गायिकाओं के संगीत का इतिहास बदल दिया, तो वहीं आशा भोंसले ने अपनी नायाब आवाज से लाखों लोगों को संगीत की ताज़गी दी। 8 सितंबर 1933 को जन्मी आशा भोंसले गुरूवार को 83 साल की हो रही हैं।
पिता से ली थी संगीत की शिक्षा
महाराष्ट्र के सांगली में 8 सितम्बर 1933 को जन्मी आशा भोंसले को संगीत के संस्कार अपने परिवार और घर से ही मिले। आशा के पिता दीनानाथ मंगेशकर प्रसिद्ध गायक थे और आशा बचपन से ही अपने पिता से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने लगीं। हालांकि पिता से संगीत की शिक्षा का साथ आशा के जीवन में लंबा नहीं चला और जब वे महज 9 वर्ष की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद आशा का पूरा परिवार पुणे से कोल्हापुर और उसके बाद बम्बई आ गया। परिवार की मदद के लिए आशा और उनकी बड़ी बहन लता मंगेशकर ने गाना और फिल्मों मे अभिनय शुरू कर दिया।
कठिन था संगीत का सफ़र
पार्श्व गायन के क्षेत्र में आशा को अपना मुकाम और नाम बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि जिस दौर में वे आईं उस समय प्रसिद्ध गायिका गीता दत, शमशाद बेगम और लता मंगेशकर का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था और आशा को एक बार अपनी आवाज सुनाने का भी मौका कोई देना नहीं चाहता था। आलम यह था कि आशा सिर्फ ’बी ग्रेड’ फिल्मों के लिए ही गा पाती थीं। बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि 1950 के दशक में बॉलीवुड की अन्य गायिकाओं की तुलना में आशा ने कम बजट की ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड फिल्मों के लिए बहुत से गीत गाए। इनके गीतों के संगीतकार ए. आर. कुरैशी (अल्ला रख्खा खान), सज्जाद हुसैन और गुलाम मोहम्मद थे। जो काफी असफल रहे। हालांकि इसके बाद 1952 ई. में दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘संगदिल’ जिसके संगीतकार सज्जाद हुसैन थे, के जरिये प्रसिद्धि आशा के नसीब में चली आई।
’नया दौर’ से चखा सफलता का स्वाद
कहते हैं वक्त सभी का बदलता है। ऐसा ही कुछ आशा के साथ भी हुआ। संघर्ष के रास्ते पर चलते हुए आशा ने 1957 की फिल्म ‘नया दौर’ से सफलता का ठीक से स्वाद चखा। बाद में नैयर साहब और आशा की जोड़ी बन गई। इस साझेदारी ने कई प्रसिद्ध गीतों को लोगों के बीच लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फिर सचिन देव वर्मन और रवि जैसे संगीतकारो ने भी आशा को मौका दिया। 1966 ई. मे संगीतकार आर.डी. बर्मन की सफलतम फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ में आशा ने आर.डी. वर्मन के साथ बॉलीवुड में एक नये मुकाम को हासिल किया। आशा 1960 से 1970 के बीच प्रसिद्ध डांसर हेलन की आवाज बनीं।
निजी जीवन में बना रहा संघर्ष का साथ
आशा की निजी जिंदगी में भी उनके संगीत के सफ़र की तरह ही संघर्ष रहा। उनकी पहली शादी उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में 31 वर्षीय प्रेमी ‘गणपत राव भोंसले’(1916-1966) के साथ भागकर की। यह रिश्ता पारिवारिक इच्छा के खि़लाफ था। गणपत राव लता जी के निजी सचिव थे। यह विवाह असफल रहा। पति एवं उनके भाइयों के बुरे वर्ताव के कारण इस विवाह का दुःखान्त हो गया। 1960 के आस-पास तलाक के बाद आशा अपनी मां के घर दो बच्चों और तीसरे गर्भस्थ शिशु (आनन्द) के साथ लौट आईं।
’अरमान’ के सैट पर मिले थे आर.डी. बर्मन
आर.डी. आज भी आशा के दिल में बसे हैं। आशा का मानना है कि आरडी बर्मन को वो श्रेय नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे। आज जो रिमिक्स का दौर चल रहा है उसमें से लगभग 80 प्रतिशत गीत आर.डी. बर्मन के ही हैं। आशा को आज भी आर.डी. से अपनी पहली मुलाकात याद है। ‘अरमान’ फिल्म बन रही थी। उस दौरान एस.डी. बर्मन ने आशा से आर.डी. की मुलाकात कराते हुए कहा कि यह मेरा लड़का है। आर.डी. ने ज्यादा बात तो नहीं की, लेकिन एक नोट बुक आशा की ओर बढ़ाते हुए ऑटोग्राफ मांग लिया। उस वक्त आशा दो बच्चों की मां थीं। आशा ने तब सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे आर.डी. से शादी करेंगी। 1980 में आशा ने ‘राहुल देव वर्मन’ (पंचम दा) से शादी की। इस शादी को आशा ने राहुल देव वर्मन की अंतिम सांसो तक सफलतापूर्वक निभाया।
गज़ल गाकर दिया आलोचकों को जवाब
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 1981 मे उमराव जान और इजाज़त (1987) में पारम्परिक गज़ल गाकर आशा ने आलोचकों को करारा जबाब दिया। आशा ने क्लासिकल, पॉप और गज़ल तीनों तरह का गायन किया। इसी के बल पर उन्होंने अपनी गायन प्रतिभा का लोहा मनवाया। इन्हीं दिनों इन्हें उपरोक्त दोनों फिल्मों के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ‘बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर’ मिला।
1995 में एक बार फिर की संगीत की दुनिया में वापसी
आशा का संगीत का सफ़र 1990 तक लगातार चलता रहा। यह उनकी आवाज का ही कमाल था कि 1995 की हिट फिल्म ‘रंगीला’ से उन्होंने एक बार फिर अपनी दूसरी पारी का शुरुआत की। 2005 में आशा ने तमिल फिल्म ‘चन्द्रमुखी’ और सलमान खान अभिनित ’लकी’ के लिए पॉप सॉन्ग ‘लक्की लिप्स…’ गाया जो काफी फेमस हुआ। अक्टूबर 2004 में ’द वेरी बेस्ट ऑफ आशा भोसले’, ‘द क्वीन ऑफ बॉलीवुड’ जैसे आशा के द्वारा गाए गीतों का एलबम (1966-2003) रिलीज किया गया।
आंखों के सामने जुदा हुए आंख के तारे
आशा उस वक्त टूट गईं जब उनके सबसे बड़े बेटे हेमंत का स्कॉटलैंड में निधन हो गया। हेमंत कैंसर से पीड़ित थे और उनका इलाज चल रहा था। वे संगीतकार के तौर पर प्रसिद्ध थे। उन्होंने 70 के दशक में कई फिल्मों में संगीत दिया था। इसके अलावा आशा की बेटी वर्षा ने भी खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली थी। कहा जाता है कि इससे पहले भी वर्षा ने साल 2008 में भी खुदकुशी की कोशिश की थी। तब ज्यादा नींद की गोलियां खाने की वजह से उनकी तबीयत खराब हो गई थी और उस समय उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वर्षा तलाकशुदा थीं और अपनी मां आशा भोंसले के साथ ही रहती थीं। वर्षा कई अखबारों में कॉलम लिखती थीं और साथ ही उन्हें गाने का भी शौक था।
गायक न होतीं तो कुक होतीं आशा
आशा गायिका के अलावा बहुत अच्छी कुक हैं। कुकिंग इनका पसंदीदा शौक है। बॉलीवुड के ‘कपूर’ खानदान में आशा द्वारा बनाए गए ‘पाया करी’, ‘गोझन फिश करी’ और ‘दाल’ काफी फेमस हैं। एक बार जब ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के एक साक्षात्कार मे पूछा गया कि यदि आप गायिका न होती तो क्या करतीं? तो आशा ने जबाब दिया कि मैं एक अच्छी कुक बनती। आशा जी एक सफल रेस्टोरेंट संचालिका भी हैं। इनके रेस्टोरेंट दुबई और कुवैत में ’आशा’ नाम से फेमस हैं।
फिर स्टेज शो को कह दिया अलविदा
जुलाई 2016 में उन्होंने अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन में एक शो किया था। इसे उन्होंने अपना आखिरी परफॉर्मेंस बताया। एक अंग्रेजी वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में आशा ने ऐसा कहा था। उन्होंने कहा कि वह 83 साल की हो चुकी हैं, लिहाजा अब स्टेज शो नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि अमेरिका ही नहीं, वे कहीं भी स्टेज शो नहीं करेंगी।
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