जानिए किस जगह कैसा है दिवाली मनाने का रिवाज़
भारत विविधताओं का देश है। यहां कदम कदम पर बोली और हवा-पानी बदल जाता है। उसी तरह हर जगह त्यौहारों को मनाने का तरीका भी अलग-अलग है। फिलहाल तो हर कोई दिवाली की तैयारियों में लगा हुआ है। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में दिवाली मनाने की परंपराएं भी बड़ी अजीब हैं। हिमाचल में बुड्ढी दिवाली मनाई जाती है और बलि दी जाती है तो छत्तीसगढ़ के एक गांव में पांच दिन पहले ही दिवाली मना ली जाती है। यहां हम आपको अलग-अलग जगह पर दिवाली मनाने के ऐसे ही कुछ रिवाज़ों के बारे में बताने जा रहे हैं।
पांच दिन पहले ही मनाते हैं दिवाली
छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गांव भी है, जहां के लोग अपने ग्राम देवता की प्रसन्नता के लिए चार प्रमुख त्योहार हफ्तेभर पहले ही मना लेते हैं। यह गांव है धमतरी जिले का सेमरा। इस गांव में सिर्फ दशहरा ही नियत तिथि को मनाया जाता है, बाकी दिवाली, होली जैसे कई बड़े त्योहार सप्ताहभर पहले ही मनाए जाते हैं। पौने दो सौ की अबादी वाले सेमरा में ग्रामीण सैकड़ों सालों से इसी तरह से त्योहार मना रहे हैं और आगे भी ऐसे ही मनाते रहेंगे। यहां ग्राम देवता सिरदार देव के सपने को साकार करने के लिए प्रतिवर्ष दिवाली, होली पोला और हरेली का त्योहार एक सप्ताह पहले ही मना लिया जाता है।
हिमाचल की दिवाली
परंपरा के मुताबिक, बुड्ढी दिवाली देशभर में मनाई जाने वाली दिवाली के बाद पड़ने वाली पहली अमावस्या से शुरू होती है। यह त्योहार ढोल-नगाड़ों के बीच पशुबलि देकर देवी-देवताओं की प्रार्थना करने, लोकगीत गाने और खुशियां मनाने का प्रतीक है। इस त्योहार के प्रतीक के रूप में सैकड़ों बकरियों और भेड़ों की बलि दी जाती है। परंपरा के अनुसार, पशुधन विशेषकर बकरी रखने वाले ग्रामीण अपने पशुओं को नजदीक के मंदिर में ले जाते हैं जहां त्योहार की पहली रात पशु की बलि दी जाती है और देवी-देवताओं की प्रतिमा के आगे पशुओं के कटे सिर पेश किए जाते हैं। इसके बाद पशुओं के मृत शरीर को घर ले जाकर पके हुए मांस को प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
बस्तर की दियारी
आदिवासियों की अधिकता वाले बस्तर अंचल के ग्रामीण इलाकों में ’दीपावली’ नहीं मनाई जाती। यहां नगरीय इलाकों से भिन्न ’दीपावली’ पर्व मनाने की बजाए ’दियारी’ का त्योहार परंपरागत तरीके से आज भी मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या को ’दीपावली’ के मौके पर नगरीय इलाकों में आमतौर पर लक्ष्मीजी का पूजन करके घरों के बाहर रोशनी और पटाखे फोड़े जाते हैं। इसके उलट ग्रामीण इलाकों में ’दियारी’ तीन दिनों तक मनाई जाती है। इस दौरान मुख्य रूप से फसल रूपी लक्ष्मी, मिट्टी और पशुधन की पूजा की जाती है।
आतिशबाजी के बिना अधूरी है पंजाब की दिवाली
दुनिया की सबसे अच्छी दिवाली अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में मनाई जाती है। यहां गुरुद्वारे को ऐसे सजाया जाता है जैसे कि आकाश के तारे जमीन पर उतर आए हैं। यहां पर भी उत्तर के अन्य राज्यों की तरह ही लक्ष्मी पूजा व आतिशबाजी के साथ दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। अगली स्लाइड में जानिए हरियाणा और महाराष्ट्र में कैसे मनाई जाती है दिवाली…