धार्मिक हिंसा को रोकने में भारत नाकामः एमनेस्टी
भारत में हो रहे आंदोलनो और धार्मिक विवादों के कारण भारत काफी सुर्खियों मे है। इसी के चलते एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि भारत का प्रशासन धार्मिक हिंसा की कई घटनाओं को रोकने में नाकाम रहा और कई बार धु्रवीकरण वाले भाषणों के जरिए तनाव में योगदान दिया गया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट आज जारी की गई। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ने वर्ष 2015-16 के लिए जारी अपनी रिपोर्ट में विश्वभर में हो रहे स्वतंत्रता के हनन और कई सरकारों द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून को मनमाने ढंग से तोडऩे के खिलाफ चेतावनी दी। इसमें भारत में मुख्य स्वतंत्रताओं पर तीव्र कार्रवाई शामिल है।
इन मुद्दो को लेकर बनाई रिपोर्ट
एमनेस्टी ने कई मुद्दो के लेकर रिर्पोट बनाई है जिसमें भारत के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि कितने ही कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों ने बढ़ते असहिष्णुता के माहौल के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय सम्मान लौटा दिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी नीतियों के आलोचक नागरिक समाज संगठनों पर प्रशासन ने कार्रवाई की और विदेश से मिलने वाले धन पर प्रतिबंध बढ़ा दिए। धार्मिक तनाव बढ़ गए और लिंग एवं जाति आधारित भेदभाव और हिंसा व्यापक स्तर पर मौजूद रही। सेंसरशिप और कटटरपंथी हिंदू संगठनों की ओर से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले बढ़े।
बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता
वर्ष 2015 में, भारत ने मानवाधिकारों पर कई आघात होते देखे। सरकार ने नागरिक समाज संगठनों पर प्रतिबंधों को तीव्र कर दिया। यहां अच्छी बात यह है कि अधिकारों के हनन का विरोध हो रहा है। धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं को लेकर फैला रोष, इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ दमनकारी कानून को उच्चतम न्यायालय के फैसले द्वारा रद्द किया जाना।
भाषणों के जरिए तनाव
एमनेस्टी ने भारत को धार्मिक हिंसा की कई घटनाओं पर रोक पाने में विफल पाया हैं और कई बार ध्रुवीकरण कराने वाले भाषणों के जरिए तनाव में योगदान देने और जाति आधारित भेदभाव एवं हिंसा बनी रहने के लिए भारतीय प्रशासन की आलोचना की।
महिलाओं के खिलाफ अपराध
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया कि हालांकि वर्ष 2014 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 3,22,000 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 37 हजार मामले बलात्कार के थे। फिर भी पुलिस अधिकारियों और भारतीय प्रशासन की ओर से लांछनों और भेदभाव के जरिए महिलाओं को यौन हिंसा की शिकायत दर्ज कराने से रोका जाता रहा। अधिकतर राज्यों में अब भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए पुलिस के लिए मानक प्रक्रियाओं का अभाव है।
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