साइंस की पढ़ाई छोड़ बने कवि, फिल्मों की तरह बनाते हैं कविता
अक्सर इंटर तक साइंस सब्जेक्ट से पढ़े बच्चों से उम्मीद की जाती है कि वो या तो डॉक्टर बने या फिर मेडिकल की किसी फील्ड में जाए लेकिन साइंस से पढ़ने वाला बच्चा अगर कवि बन जाए तो अचरज तो होगा ही। लेकिन कवि बनना भी हर किसी के बस की बात नहीं है। आज के युग में अगर कोई जवान साइंस की पढ़ाई छोड़कर कवि बन जाए तो तौबा ही हो जाए। पड़ोस वाले ताने दे दे कर मार डाले की ‘‘बेटा आजकल क्या कर रहे हो?’’ लेकिन इन सभी रूढ़िवादी विचारधाराओं को तोड़ते हुए एक शख्स ने साइंस की पढ़ाई छोड़कर कवि बनने का फैसला लिया। ये शख्स है कुंवर नारायण। 19 सितंबर को इनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको बताने जा रहे है उनकी ज़िन्दगी से जुड़ी कुछ ख़ास बातें और उनकी कुछ ख़ास कविताएं…
कुंवर नारायण का जन्म 19 सितंबर 1927 को फैजाबाद यूपी में हुआ था। कुंवर नारायण हिंदी के सम्मानित कवियों में गिने जाते हैं। कुंवर नारायण ने इंटर तक साइंस में अपनी पढ़ाई की लेकिन फिर साहित्य में रूचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विधार्थी बन गए। उन्होंने लखनऊ विश्वविधालय से 1951 में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। इनकी काव्ययात्रा ‘चक्रव्यूह’ से शुरू हुई थी। इसके साथ ही उन्होंने उस दौर के पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। वे एक कवि के रूप में तो प्रसिद्ध थे ही साथ ही वे कहानी, लेख, समीक्षाएं भी लिखते थे।
कुंवर नारायण को फिल्मों से बड़ा लगाव था। उनका कहना था कि कविताएं फिल्मों की तरह ही होती है उन्हें भी फिल्मों की तरह ही बनाया जाता हैं। जिस तरह अलग-अलग सीन को शूट कर एक साथ एक फिल्म बनाई जाती है उसी तरह कविता को भी बनाया जाता हैं। कुंवर नारायण को साहित्य में योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ भी दिया गया था। ये पुरस्कार उन्हें 2009 में प्रतिभा पाटिल द्वारा दिया गया था।