इन रिकॉर्ड के बादशाह है सात समुद्र तैरकर पार करने वाले मिहिर सेन
सांपों और शार्क के बीच तैराकी
इसके बाद मिहिर सेन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और नए कीर्तिमान रचने के लिए आगे निकल पड़े। उनका अगला लक्ष्य श्रीलंका के तलाईमन्नार से भारत के धनुष्कोटी तक तैराकी करना था। अपने इस लक्ष्य में भी वे पीछे नहीं हटे और इसे 25 घंटे 44 मिनट में पूरा किया। आपको बता दे कि जहां मिहिर सेन ने तैराकी की वो पाल्क स्ट्रेट अनेक जहरीले सांपों और शार्क से भरपूर थी।
जिब्राल्टर पार करने वाले पहले एशियाई
इसके बाद मिहिर सेन ने 24 अगस्त 1966 को एक नया कीर्तिमान रचा। जिसमें उन्होंने 8 घंटे 1 मिनट में जिब्राल्टर डार-ई-डेनियल को पार किया। यह स्पेन और मोरक्को के बीच है। जिब्राल्टर को तैर कर पार करने वाले मिहिर सेन पहले एशियाई थे। इसके बाद उन्होंने 12 सितंबर 1966 को डारडेनेल्स को तैरकर पार किया। इसे पार करने वाले वह विश्व के पहले व्यक्ति थे।
पनामा कैनल
अब मिहिर सेन ने अपना लक्ष्य पनामा कैनल को बनाया जिसे उन्होंने 29 अक्टूबर 1966 को शुरू किया। इस कैनल को उन्होंने लंबाई में पार किया था जिस कारण उन्होंने इसे दो स्टेज में पार किया। 29 अक्टूबर को शुरू करके पनामा की तैराकी की उन्होंने 31 अक्टूबर को इसे समाप्त किया। पनामा कैनल को उन्होंने 34 घंटे 15 मिनट में पार किया था।
सात समुद्र पार करने वाले भारतीय
मिहिर सेन ने कुल मिलाकर 600 किलोमीटर की समुद्री तैराकी की। एक ही कैलेंडर वर्ष में उन्होंने 6 मील लंबी दूरी की तैराकी पार करके नया कीर्तिमान रचा था। वहीं उन्होंने पांच महाद्वीपों के सात समुद्रों को तैरकर पार किया था। ऐसा करने वाले वे विश्व के पहले व्यक्ति थे। उनके इसी अद्भुत साहसिक कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1959 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।
1967 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से भी सम्मानित किया था। मिहिर सेन भारत के ही नहीं दुनिया के अतुलनीय तैराक थे। अपनी हिम्मत और मेहनत के दम पर उन्होंने इतनी बड़ी तैराकी का जोखिम उठाया था। लेकिन उनकी आखिरी की ज़िन्दगी काफी कष्टनीय रही। उनका आखिरी समय बीमारियों से भरा रहा। बीमारियों के बीच ही 11 जून 1997 में उनका निधन हो गया।
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