एक बार फिर जेल जा सकते हैं शहाबुद्दीन
पूर्व आरजेडी सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को एक बार फिर जेल जाना पड़ सकता है। बता दें कि शहाबुद्दीन जमानत पर रिहा हुए हैं। लेकिन उनकी इस जमानत को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं लगाई गई है। इन याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई होगी। यदि इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट जमानत रद्द करने का फ़ैसला लेता है तो एक बार फिर शहाबुद्दीन को जेल जाना पड़ सकता है। याचिका बिहार सरकार और प्रशांत भूषण की ओर से दायर की गई है।
जेल जाने को तैयार हैं शहाबुद्दीन
इस मामले पर जब शहाबुद्दीन से बात की गई तो उन्होंने खुद को न्यायपालिका का सम्मान करने वाला नागरिक बताया और कहा कि ”ये कोर्ट का मामला है। कोर्ट ने ही मुझे जमानत दी है। अगर कोर्ट मुझे दोबारा जेल जाने के लिए कहता है तो मैं तैयार हूं। ये मेरे लिए मुद्दा नहीं है। आखिर क्यों नहीं मैं जेल जाऊंगा। मैं कानून का पालन करने वाला देश का नागरिक हूं।”
कौन हैं शहाबुद्दीन ?
-शहाबुद्दीन एक ऐसा नाम जिससे बिहार का हर एक शख्स वाकिफ़ है। 1967 में सीवान जिले में जन्मे शहाबुद्दीन का नाम आतंक का दूसरा नाम माना जाता है। उन्होंने अपनी पढ़ाई बिहार से पूरी की थी। राजनीति में एमए और पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन ने हीना शहाब से शादी की। उनका एक बेटा और एक बेटी है। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अपराध और राजनीति की दुनिया में कदम रखा।
-किसी फिल्मी किरदार की भांति दिखने वाले शहाबुद्दीन की कहानी भी फिल्मी सी लगती है। कुछ समय बाद ही उन्होंने राजनीति में काफ़ी नाम कमाया। अस्सी के दशक में पहली बार शहाबुद्दीन का नाम आपराधिक मामले में सामने आया । सन् 1986 में पहली बार उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया। इसके बाद तो उन पर एक के बाद एक आपराधिक मुकदमे दायर होने लगे। और इस तरह से छोटी सी उम्र में ही उनका नाम अपराध की दुनिया में आ गया।
-राजनीतिक गलियारों में उनका नाम उस वक्त चर्चाओं में आया, जब शहबुद्दीन ने लालू प्रसाद यादव की पार्टी जनता दल की युवा इकाई से हाथ मिलाया। पार्टी में आते ही उन्होंने अपनी ताकत आजमाना शुरू कर दी।
-1990 में उन्हें विधानसभा का टिकट मिला। इस चुनाव में उनकी जीत हो गई। उसके बाद 1995 में चुनाव लड़ा। और इसमें भी वे जीत गए। 1996 में लोकसभा का टिकट मिला इसमें भी उनकी जीत हुई। 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत और बढ़ गई। एक और तो वे राजनीति में अपना नाम कमा रहे थे लेकिन वहीं दूसरी और वे आपराधिक गतिविधियां भी लिप्त होते जा रहे थे। 2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स युनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान राजद सरकार उसे संरक्षण दे रही थी।
-शहबुद्दीन का आतंक इस कदर था कि उस समय उनके खिलाफ किसी भी मामले में गवाही देने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी। ताकत के नशे में वे इतना चूर हो गए थे कि आए दिन अधिकारियों से मारपीट करना उनका काम बन गया था। यहां तक की मार्च 2001 में उन्होंने पुलिस वालों पर गोली भी चला दी थी।
इन मामलों में हुई थी उम्रकैद
साल 2004 के चुनाव के बाद से शहबुद्दीन का बुरा दौर शुरू हो गया था। इस दौरान उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए। नवंबर 2005 में पुलिस की एक विशेष टीम ने उन्हें दिल्ली से दोबारा गिफ़्तार कर लिया। इस वक्त वे संसद सत्र में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे। दरअसल इससे पहले उनके पास से सीवान के प्रतापपुर से अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी शस्त्र फैक्ट्रियों से बने हथियार बरामद किए गए थे। हत्या, अपहरण, बमबारी ,अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों मामले उनके खिलाफ अदालत में दाखिल किए गए। अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बता दें कि इस वक्त भी उन पर 50 से ज्यादा केस चल रहे है।