‘B’Day: प्रखर समाजवादी राजनेता जिनकी कलम से डरते थे अंग्रेज़
यूपी में समाजवादी पार्टी का नाम तो आप जानते ही है। यूपी के सीएम अखिलेश यादव उसी सरकार के है। समाजवादी धारा के जनक कहे जाने वाले राम मनोहर लोहिया का समाजवादी विचाराधारा को लाने वाले नेता थे। अपने लेखों के दम पर वे अंग्रेजों को भी डरा देते थे। अंग्रेज उनके लेखों से भयभीत होकर उन्हें जेल में डाल देते थे। एक वक्त ऐसा भी था जब वे राष्ट्रपिता गांधीजी के साथ भी जेल गए थे। 12 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथी के मौके पर हम आपको बताने जा रहे है कुछ ख़ास बाते….
राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को यूपी के अकबरपुर में हुआ था। उनकी माँ एक शिक्षिका थी। जब वे बहुत छोटे थे तभी उनकी माँ का निधन हो गया था। उनके पिता एक राष्ट्रभक्त थे इसलिए बचपन से ही उनकी रूचि देशभक्ति में जाग्रत होने लगी। वे युवा अवस्था में ही विभिन्न रैलियों और विरोध सभाओं के माध्यम से भारत के स्वतंत्रता आंदोलों में भाग लेने लगे। एक बार वे अपने पिता के जरिए महात्मा गांधी से मिले। तब राम मनोहर उनसे मिलने के बाद काफी प्रभावित हुए और गांधीजी के आदर्शो का सर्मथन किया।
लोहिया ने हमेशा भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी से अधिक हिंदी को प्राथमिकता दी। उनका विश्वास था कि अंग्रेज शिक्षित और अशिक्षित जनता के बीच दूरी पैदा करती है। वे कहते थे कि हिंदी के उपयोग से एकता की भावना और नए राष्ट्र के निर्माण से संबंधित विचारों को बढ़ावा मिलेगा। वे जात-पात के घोर विरोधी थे. उन्होंने जाति व्यवस्था के विरोध में सुझाव दिया कि “रोटी और बेटी” के माध्यम से इसे समाप्त किया जा सकता है। वे कहते थे कि सभी जाति के लोग एक साथ मिल-जुलकर खाना खाएं और उच्च वर्ग के लोग निम्न जाति की लड़कियों से अपने बच्चों की शादी करें। इसी प्रकार उन्होंने अपने ‘यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी’ में उच्च पदों के लिए हुए चुनाव के टिकट निम्न जाति के उम्मीदवारों को दिया और उन्हें प्रोत्साहन भी दिया। वे ये भी चाहते थे कि बेहतर सरकारी स्कूलों की स्थापना हो, जो सभी को शिक्षा के समान अवसर प्रदान कर सकें।
स्वतंत्रता आंदोलनों में भूमिका
स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने की इच्छा बचपन से ही थी। जब उन्हें मौका मिला तो उन्होंने इसमे अपनी पूरी जान लगा दी। जब वे यूरोप में थे तो उन्होंने वहां एक क्लब बनाया जिसका नाम ‘असोसिएशन ऑफ यूरोपियन इंडियंस’ रखा। जिसका उद्देश्य यूरोपीय भारतीयों के अंदर भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति जागरूकता पैदा करना था। इसके बाद उन्होंने जिनेवा में लगी ऑफ नेशन्स की सभा में भाग लिया जहां वे रातों-रात सुपरस्टार बन गए।
भारत वापस आने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और वर्ष 1़934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की आधारशिला रखी। वर्ष 1936 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का पहला सचिव नियुक्त किया। 24 मई, 1939 को लोहिया को उत्तेजक बयान देने और देशवासियों से सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार करने के लिए लिए पहली बार गिरफ्तार किया गया, पर युवाओं के विद्रोह के डर से उन्हें अगले ही दिन रिहा कर दिया गया। हालांकि जून 1940 में उन्हें “सत्याग्रह नाउ” नामक लेख लिखने के आरोप में पुनः गिरफ्तार किया गया और दो वर्षों के लिए कारावास भेज दिया गया। बाद में उन्हें दिसम्बर 1941 में आज़ाद कर दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वर्ष 1942 में महात्मा गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद और वल्लभभाई पटेल जैसे कई शीर्ष नेताओं के साथ उन्हें भी कैद कर लिया गया था।
इसके बाद भी वे दो बार जेल गए, एक बार उन्हें मुंबई में गिरफ्तार कर लाहौर जेल भेजा गया था और दूसरी बार पुर्तगाली सरकार के खिलाफ भाषण और सभा करने के आरोप में गोवा. जब भारत स्वतंत्र होने के करीब था तो उन्होंने दृढ़ता से अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से देश के विभाजन का विरोध किया था. वे देश का विभाजन हिंसा से करने के खिलाफ थे. आजादी के दिन जब सभी नेता 15 अगस्त, 1947 को दिल्ली में इकट्ठे हुए थे, उस समय वे भारत के अवांछित विभाजन के प्रभाव के शोक की वजह से अपने गुरु (महात्मा गाँधी) के साथ दिल्ली से बाहर थे।
आजादी के बाद का जीवन
आजादी के बाद भी वे राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ही अपना योगदान देते रहे। उन्होंने आम जनता और निजी भागीदारों से अपील की कि वे कुओं, नहरों और सड़कों का निर्माण कर राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए योगदान में भाग लें। ‘तीन आना, पन्द्रह आना’ के माध्यम से राम मनोहर लोहिया ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर होने वाले खर्च की राशि “एक दिन में 25000 रुपए” के खिलाफ आवाज उठाई जो आज भी चर्चित है। उस समय भारत की अधिकांश जनता की एक दिन की आमदनी मात्र 3 आना थी जबकि भारत के योजना आयोग के आंकड़े के अनुसार प्रति व्यक्ति औसत आय 15 पन्द्रह आना था।
लोहिया ने उन मुद्दों को उठाया जो लंबे समय से राष्ट्र की सफलता में बाधा उत्पन्न कर रहे थे। उन्होंने अपने भाषण और लेखन के माध्यम से जागरूकता पैदा करने, अमीर-गरीब की खाई, जातिगत असमानताओं और स्त्री-पुरुष असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने कृषि से सम्बंधित समस्याओं के आपसी निपटारे के लिए ‘हिन्द किसान पंचायत’ का गठन किया। वे सरकार की केंद्रीकृत योजनों को जनता के हाथों में देकर अधिक शक्ति प्रदान करने के पक्षधर थे। अपने अंतिम कुछ वर्षों के दौरान उन्होंने देश की युवा पीढ़ी के साथ राजनीति, भारतीय साहित्य और कला जैसे विषयों पर चर्चा किया। राम मनोहर लोहिया का निधन 57 साल की उम्र में 12 अक्टूबर, 1967 को नई दिल्ली में हो गया।