Women’s Day Special : पिता की मदद को राजनीति में आईं थी महबूबा, ऐसे जीता कश्मीरियों का दिल
मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद से ही राज्य में सरकार निर्माण को लेकर पीडीपी-बीजेपी गठबंधन में नए सिरे से खींच-तान शुरू हो गई है। जम्मू-कश्मीर में फिलहाल गवर्नर रूल लागू है। विपक्षी दल के तौर पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पीडीपी-बीजेपी पर लगातार सरकार निर्माण को लेकर दबाव बना रही है, वहीं महबूबा मुफ्ती गठबंधन की सरकार को आगे बढ़ाने से पहले नेशनल पावर प्रोजेक्ट्स को राज्य सरकार को सौंपने और कई अन्य पैकेज को लेकर केंद्र से ठोस आश्वासन चाहती हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, महबूबा विश्वास बहाली के जिन उपायों की बात कर रही हैं उनमें पाकिस्तान और अलगावावादियों के साथ शांति वार्ता भी शामिल है।
महबूबा मुफ्ती 15 सालों से कश्मीर की राजनीति का एक प्रमुख चेहरा है। महबूबा भारत की कश्मीर घाटी के सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त राजनीतिज्ञों में से एक हैं। उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की अध्यक्षता में उनकी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिव पार्टी का गठन किया गया था, महबूबा इसकी उपाध्यक्ष थीं। पार्टी की सक्सेस का पूरा श्रेय महबूबा के पार्टी के प्रति समर्पण को ही जाता है।
पिता की मदद के लिए ज्वॉइन की पॉलिटिक्स
मोहम्मद मुफ्ती ने 1987 में वीपी सिंह की पार्टी को ज्वॉइन करने के लिए कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया था। इसके दो साल बाद ही वे भारत के पहले मुस्लिम गृह मंत्री बने। 1996 में उन्होंने पीवी नरसिम्हा की अगुवाई में फिर से कांग्रेस को ज्वॉइन कर लिया। उसी समय भारत सरकार ने घाटी में विधानसभा चुनाव कराने का फैसला लिया। उस समय नेशनल पार्टी के बैनर तले कोई भी चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था। तब मुफ्ती ने अपनी पत्नी गुलशन आरा और अपनी बड़ी बेटी महबूबा को क्रमशः पहलगाम और बिजबेहरा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव में खड़ा कर दिया। मुफ्ती की पत्नी ने तो अपनी सीट खो दी लेकिन महबूबा चुनाव जीत गई। इस तरह महबूबा केवल अपने पिता की मदद करने के लिए पॉलिटिक्स में उतर गईं। जब उन्होंने पॉलिटिक्स ज्वॉइन की तो उन्होंने जाना कि कश्मीर के लोगों की मदद करने के लिए पॉलिटिक्स ही सही जगह है। उस समय कश्मीर में फारुख अब्दुल्ला का राज था।
कश्मीरों लोगों के दिल में ऐसे बनाई जगह
चुनाव में अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के पहले तक उन्हें कोई नहीं जानता था। कश्मीर के आतंकवाद के दौरान उन्होंने काफी अच्छी भूमिका निभाई। उन्होंने उस दौरान आतंकवाद की चपेट में आए परिवारों का भी दौरा किया था। आतंकवाद से प्रताड़ित गांवों की महिला के दुख में रोकर उन्होंने कश्मीर के लोगों के दिल में जगह बनाई।
बहन के किडनेप के दौरान कमजोर पड़ी महबूबा
कश्मीर में महबूबा को ’डैडीज गर्ल’ कहा जाता है। लेकिन 1989 में डैडी की ये गर्ल तब कमजोर पड़ गई थी जब उनकी छोटी बहन रुबिया को कुछ आतंकवादियों ने एक मिनी बस से किडनेप कर लिया था। उस वक्त मुफ्ती को भारत का गृह मंत्री बने 5 ही दिन हुए थे और उनकी तीसरे नंबर की बेटी रुबिया को आतंकवादियों ने किडनेप कर लिया था। इसके बदले आतंकवादियों ने जेल में बंद 5 आतंकवादियों को रिहा करने की मांग की थी। तब भारत सरकार को आतंकवादियों की बात माननी पड़ी थी और मुफ्ती की बेटी को रिहा करने के लिए 5 आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था।
दो बेटियों की मां हैं महबूबा
जब रुबिया की शादी हुई उस वक्त महबूबा का अपने पति से तलाक हुआ। वे अपनी दो बेटियों इल्तिजा और इर्तिका के साथ रहती हैं। उनकी दुनिया उनकी दोनों बेटियां ही हैं। दोनों बेटियों में से इल्तिजा लंदन के एक हाईस्कूल में हैं और इर्तिका अपने मामा से प्रेरित होकर न्यूयॉर्क में स्क्रीन राइटिंग का कोर्स कर रही हैं। महबूबा ने भी कश्मीर यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री हासिल की है। उनका कहना है कि उन्हें सीएम की कुर्सी, नाम और शोहरत में कोई दिलचस्पी नहीं है। वो सिर्फ घाटी में शांति और प्रगति लाना चाहती हैं।
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