कभी बेचती थी अख़बार आज IIT से पास होकर कर रही जॉब
‘ये दो तस्वीरों की एक ही कहानी है। ये तस्वीरें आईना भी हैं और अश्क भी। इनमे कल भी है और आज भी। सुर भी साज भी। इन तस्वीरों में बीते कल की ख़ामोशी है और आज की बुलंदी भी। ये दोनों तस्वीरें मेरी शिष्या शिवांगी की है। एक उस समय कि जब शिवांगी आपने पिता के साथ सुपर 30 में पढ़ने आई थी और एक अभी की। स्कूल के समय से ही वह अपने पिता को सड़क के किनारे मैगज़ीन और अख़बार बेचने में मदद किया करती थी। जब पिता थक जाते या खाना खाने घर जाते तब शिवांगी ही पूरी जिम्मेवारी संभालती थी। लेकिन उसे जब भी समय मिलता पढ़ना वह नहीं भूलती थी। शिवांगी उत्तर-प्रदेश के एक छोटे सी जगह डेहा (कानपुर से कोई 60 किलोमीटर दूर) के सरकारी स्कूल से इंटर तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। एक दिन उसने अख़बार में सुपर 30 के बारे में पढ़ा और फिर मेरे पास आ गई।
सुपर 30 में रहने के दरमियान मेरे परिवार से काफी घुल-मिल गयी थी शिवांगी। मेरे माताजी को वह दादी कह कर बुलाती थी और हमलोग उसे बच्ची कहा करते थे। कभी माताजी की तबीयत ख़राब होती तब साथ ही सो जाया करती थी। आई. आई. टी. का रिजल्ट आ चुका था और वह आई. आई. टी. रूरकी जाने की तैयारी कर रही थी। उसके आँखों में आसू थे और मेरे परिवार की सभी महिलाएं भी रो रहीं थी, जैसे लग रहा था कि घर से कोई बेटी विदा हो रही हो। उसके पिता ने जाते-जाते कहा था कि लोग सपने देखा करते हैं और कभी-कभी उनके सपने पूरे भी हो जाया करते हैं। लेकिन मैंने तो कभी इतना बड़ा सपना भी नहीं देखा था।
आज भी शिवांगी मेरे घर के सभी सदस्यों से बात करते रहती है। अभी जैसे ही उसके नौकरी लग जाने की खबर हमलोगों को मिली मेरे पूरे घर में ख़ुशी की लहर सी दौड़ गयी। सबसे ज्यादा मेरी माँ खुश हैं और उनके लिए आखों में आंसू रोक पाना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने बस इतना ही कहा कि अगले जनम में मुझे फिर से बिटिया कीजियो।’