घरेलू हिंसा कानून पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला
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सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा को लेकर एक ऐतिहासिक फ़ैसला दिया है। महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनज़र कोर्ट के इस फ़ैसले को बड़ा बदलाव माना जा रहा है। दरअसल, कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून की धारा 2 (क्यू) से ‘वयस्क पुरुष शब्द’ हटाकर ‘व्यक्ति’शब्द कर दिया है। कोर्ट के इस बदलाव से घरेलू हिंसा कानून के तहत पुरुषों के साथ-साथ अब महिलाओं पर भी मुकदमा किया जा सकता है। बता दें कि अब तक घरेलू हिंसा के अनेक मामलों में परिवार की महिला और किशोर सदस्यों की मिलीभगत के अनेक मामले सामने आये हैं। पिछले साल जारी भारत सरकार की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में सबसे अधिक संख्या घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों की है, जो कि 36 फीसदी से अधिक है। सामाजिक और प्रशासनिक समस्याओं की वजह से ऐसी बहुत-सी घटनाओं की शिकायत भी दर्ज नहीं हो पाती है। कोर्ट का ये फ़ैसला घरेलू हिंसा पर लगाम कसने के लिए काफ़ी हद तक काम करेगा।
ये कहा कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला बॉम्बे कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ एक अपील पर आया है। बता दें कि हाईकोर्ट ने इस आधार पर घरेलू हिंसा के मामले से दो लड़कियों, एक महिला और एक नाबालिग लड़के सहित एक परिवार के चार लोगों को आरोपमुक्त कर दिया था कि वे वयस्क पुरूष नहीं है और इस कारण हाईकोर्ट ने उन पर घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा चलाने से इंकार कर दिया था। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2005 के इस कानून से इस प्रावधान को हटा दिया गया है। अदालत ने कहा कि उसकी नज़र में यह प्रावधान न्याय देने की राह में बाधक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने आगे कहा, ’वयस्क पुरुष शब्द’ के कारण महिलाओं को सभी प्रकार की घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बनाए कानून की समानता की मूल भावना को ही नष्ट कर रहा है।
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