तकनीकी नवाचार से होगा बेड़ा पार ?
तकनीकी नवोन्वेषों और विश्व अर्थव्यवस्था में बदलाव एक दूसरे पर इस कदर आश्रित हैं कि हम किसी एक को दूसरे से अलग करके नहीं देख सकते। सदियों तक कृषि आधारित सामाजिक व्यवस्था में अर्थ का महत्त्व तो था लेकिन उतना नहीं जितना हमें आज देखने को मिलता है। यही वजह है कि आधुनिक विश्व की शुरुआत के लिए औद्योगिक क्रांति को एक मानक बनाया गया।
आधुनिक विश्व में चरणबद्घ बदलाव की शुरुआत 19वीं सदी के आरंभ में यानी सन 1800 के आसपास हुई। यह संयोग ही रहा कि उसके बाद तकरीबन हर 50 साल में दुनिया में कोई न कोई ऐसा बड़ा आविष्कार होता रहा जिसने विश्व अर्थव्यवस्था को विकास के लिए जरूरी ईंधन मुहैया कराया।
औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात इंगलैंड में हुआ और इसका पहला चरण सन 1790 से 1830 के बीच अस्तित्त्व में रहा। जैसे ही उत्पादन का काम मनुष्य से मशीनों के पास गया। बड़े पैमाने पर उत्पादन की शुरुआत हुई। इतना ही नहीं इस उत्पादन की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी थी क्योंकि मशीनें मानवीय कमियों से रहित थीं। आउटसोर्सिंग की शुरुआत भी सही मायने में औद्योगिक युग की ही देन है। एक बड़े काम के कई छोटे-छोटे हिस्से आसपास के घरों में श्रमिकों द्वारा पूरे किए जाते थे। इस तरह औद्योगिक क्रांति निर्यात के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर भी रोजगार पैदा कर रही थी। मशीनों के प्रयोग ने उत्पादन लागत में भी नाटकीय कमी लाने में मदद की। इससे चीजें पहले के मुकाबले सस्ती होने लगीं और उनकी बिक्री में बढ़ोतरी देखने को मिली।
विश्व अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने वाला दूसरा अहम कारक रहा रेलवे इंजन। इसमें दो राय नहीं कि अगर औद्योगिक क्रांति परवान चढ़ सकी तो इसकी सबसे बड़ी वजह रेल थी। रेल इंजन के आगमन के बाद न केवल आवागमन में लगने वाला समय बल्कि माल ढुलाई की समस्या बहुत तेजी से कम हुई। एक बार रेलवे लाइन बिछा देने के बाद बहुत लंबे समय तक बहुत कम दामों पर वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जा सकता था। यही वह दौर था जब कपास का व्यापक उत्पादन शुरू हुआ और निर्मित वस्तु का कारोबार दुनिया का सबसे बड़ा कारोबार बन गया।
बिजली के आविष्कार को आधुनिक विश्व के महानतम आविष्कारों में शामिल किया जाना चाहिए। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बिजली के आगमन के पहले हमारी दुनिया कैसी थी? बेंजमिन फ्रैंकलिन द्वारा बिजली का आविष्कार किए जाने के बहुत पहले हम इस ऊर्जा को महसूस कर सकते थे। लेकिन इसका संग्रहण करना हमें नहीं आया था। आज अगर एक या दो घंटे के लिए बिजली चली जाए तो जीवन रुक सा जाता है। अपने आसपास नजर डालिए शायद ही ऐसा कोई उपकरण आपको नजर आएगा जिसे चलाने में बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती हो। बड़ी-बड़ी फैक्टरियों में उत्पादन से लेकर, चिकित्सकीय उपकरण चलाने, मोबाइल चार्ज करने और खाना गरम करने जैसे मामूली कामों तक के लिए हमें बिजली की आवश्यकता होती है। मास प्रोडक्शन में बिजली तथा अन्य प्रकार की ऊर्जा का जमकर इस्तेमाल होता है।
इस लिहाज से देखा जाए तो पेट्रोलियम पदार्थों ने भी दुनिया के विकास और आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाई। यूं तो किसी न किसी रूप में पेट्रोलियम उत्पादों का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता रहा है लेकिन पोलैंड के केमिस्ट फिलिप वाल्टर ने सन 1850 के आसपास पहली बार पेट्रोलियम उत्पाद को रिफाइन कर केरोसिन तेल का निर्माण किया। इससे कुछ समय पहले ही स्कॉट लैंड के केमिस्ट जेम्स यंग ने एक कोयला खदान में हो रहे तेल रिसाव को बोतल में बंद किया था। यह आधुनिक विश्व में पेट्रोल की दस्तक थी। यंग ने ही आधुनिक विश्व की पहली पेट्रोलियम रिफाइनरी स्थापित की। विश्व अर्थव्यवस्था में पेट्रोलियम पदार्थों के महत्त्व को अलग से रेखांकित करने की आवश्यकता नहीं है इसके लिए तो केवल पश्चिम एशिया का इतिहास और वहां छिड़ी लड़ाइयों पर एक बार गौर कर लेने की आवश्यकता है।
परंतु आधुनिक विश्व में पेट्रोलियम की असली महत्ता और एक हद तक उसकी सत्ता स्थापित करने का काम किया वाहन उद्योग ने। वाहनों के आगमन ने उन जगहों तक पहुंच सुनिश्चित की जहां रेलगाडिय़ां भौगोलिक अड़चनों के कारण नहीं जा पाया करती थीं। इतना ही नहीं आटोमोबाइल के आगमन ने शहरों का विस्तार किया। उनके आसपास तेजी से उपनगरीय इलाके बसने लगे क्योंकि अब आवागमन की समस्या नहीं रह गई थी। अब किसी व्यक्ति के लिए अपने घर से कार्यालय तक की दूरी कोई मायने नहीं रखती थी। इससे अचानक दुनिया बहुत छोटी नजर आने लगी। सार्वजनिक यातायात में सुधार हुआ। एक के बाद एक सड़कें बनीं, गैस और पेट्रोल स्टेशन खुले, सड़कों के किनारे ढाबे और होटल खुलने लगे। इन सबने नए रोजगार पैदा किए। कुलमिलाकर देखा जाए तो वाहन उद्योग के आगमन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में आ रहे ठहराव को भगाया और उसमें नई जान डाल दी। दक्षिण अफ्रीका के कृषि अर्थशास्त्री थाबी निकोसो कहते हैं कि वाहनों के आगमन का सबसे बड़ा असर खेती के काम पर पड़ा। खेती के लिए पेट्रोलियम से चलने वाली आधुनिक मशीनें आईं। सिंचाई के लिए डीजल से चलने वाले पंप आए और उपज को खेत से मंडी तक ले जाना पहले की तुलना में कई गुना अधिक आसान हो गया।
आधुनिक युग में वैश्विक विकास में योगदान करने वाले कारकों में आखिरी नाम सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र का है। कंप्यूटर के आगमन ने यहां एक क्रांति का सूत्रपात किया। पिछले दो दशक में अचानक बहुत तेज बदलाव देखने को मिले लेकिन अब इस क्षेत्र में भी एक किस्म का ठहराव देखने को मिल रहा है। देश की प्रमुख आईटी कंपनियों को अपना बिजनेस मॉडल बदलने पर मजबूर होना पड़ा है। वैश्विक बाजार में सॉफ्टवेयर निर्माण की मांग अचानक कमजोर पड़ गई और अब ये कंपनियां सेवा क्षेत्र में नई भूमिकाओं के साथ हाजिर हैं।
उपरोक्त तमाम नवाचारों की मदद से हमने बीते तीन सौ साल से अधिक का समय निकाल दिया। लेकिन अब एक ठहराव देखने को मिल रहा है। ऐसे में विश्व अर्थव्यवस्था के जानकारों को बेसब्री से प्रतीक्षा है एक ऐसे नए क्षेत्र की जो आने वाले कम से कम 50 सालों तक विश्व अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखे। इस क्षेत्र के कई दावेदार हैं। रिन्यूएबल एनर्जी, बायोटेक्रॉलजी, न्यू मटीरियल और थ्रीडी प्रिंटिंग टेक्रालजी आदि कुछ वैकल्पिक उपाय हैं जो आने वाले दिनों में अधिक व्यापक स्वरूप ले सकते हैं। इनमें भी थ्रीडी प्रिंटिंग की संभावनाएं ज्यादा हैं।
फोब्र्स पत्रिका के लेखक रिक स्मिथ अगर कहते हैं कि थ्री डी प्रिंटिंग में वैश्विक उत्पादन प्रक्रिया में बदलाव लाने की आश्चर्यजनक क्षमता है तो हमें इस बात पर गौर करना चाहिए। स्मिथ दावा करते हैं कि यह तकनीक 300 साल पहले औद्योगिक क्रांति के जरिए उत्पादन प्रक्रिया में आए बदलाव को पीछे छोडऩे में सक्षम है। थ्री डी प्रिंटिंग तकनीक वह तकनीक है जिसमें कंप्यूटर नियंत्रित कार्यक्रम के जरिए विभिन्न परतों की मदद से त्रिआयामी उत्पाद तैयार किए जाते हैं। हाल ही में थ्रीडी प्रिंटिंग तकनीक से एक चलने योग्य पिस्तौल और विमान का एक ऐसा जरूरी हिस्सा बनाने में कामयाबी मिली है जिसे बनाने की अन्य प्रक्रिया अत्यंत जटिल है। इतना ही नहीं थ्रीडी तकनीक से बना हिस्सा मूल हिस्से से 83 प्रतिशत हल्का है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह तकनीक किस कदर उपयोगी साबित हो सकती है। चूंकि इसका सीधा संबंध अर्थव्यवस्था से है इसलिए यह तय है कि जितनी जल्दी और जितना ज्यादा निवेश इस योजना में होगा उतनी ही तेजी से यह आगे बढ़ेगी। भारत जैसे देश जो विकास के मानकों पर कई देशों से पीछे है, उसे चांद और मंगल पर जाने की कवायदों के बजाय थ्री डी प्रिंटिंग जैसी नई तकनीकों पर अधिक से अधिक शोध करना चाहिए। क्या पता विश्व विकास क्रम की अगली कड़ी का केंद्र हम हों।
|