नोटबंदी के बाद मेगा फूड परियोजनाएं अटकी, किसानों को हो सकता है नुकसान
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नोटबंदी के बाद से देश में कैश की किल्लत हो गई थी जो अब धीरे-धीरे कम हो रही है। नोटबंदी के बाद से देश बदलाव के दौर से गुजर रहा है। पूरा देश डिजिटल हो रहा है और कैशलेस इकोनॉमी की ओर जा रहा है ऐसे में देश के किसान का विकास करना भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि किसान ही देश की अर्थव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण घटक है।
नए साल से पहले पीएम मोदी ने ने देश की जनता को संबोधित किया। देश की जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कई योजनाओं के बारे में जनता को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उन्होंने देश के हर वर्ग के लिए अलग-अलग चीज़े दी है। इसे आप मिनी बजट भी कह सकते हैं।
पीएम मोदी ने अपने भाषण में लोगों के घर बनाने के लिए लोन पर रियायत देने, बिजनेस लोन के लिए गारंटी, गर्भवती महिलाओं के लिए मदद राशि, बुजुर्गो के पैसों के लिए ज़्यादा इंट्रेस्ट रेट जैसी सौगात उन्होंने दी। वहीं किसानों को भी कुछ सौगात नए साल में मिली। पीएम मोदी ने किसानों का ध्यान रखते हुए उनके द्वारा बुआई के लिए गए साठ दिन के ब्याज को माफ कर दिया।
किसानों के किसान क्रेडिट कार्ड को रूपे कार्ड में बदलने की घोषणा भी की। लेकिन नोटबंदी के बाद का माहौल कुछ और ही नज़र आ रहा है जिससे किसान परेशानी में पड़ सकते है। नोटबंदी के बाद से ही ग्रामीण क्षेत्रो में मेगा फूड पार्क परियोजना का काम अधर में ही लटका हुआ है। इस योजना के रूकने से बड़े पैमाने पर किसानों को नुकसान हो सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फलों एवं सब्जियों का प्रसंस्करण कर उन्हें खराब होने से बचाने में सक्षम और स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने वाले मेगा फूड पार्को की स्थापना का काम धन की कमी के कारण अधर में लटका हुआ है। कृषि मंत्रालय से संबंधित स्थायी संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में देश में 34 मेगा फूड पार्कों की स्थापना में हो रही देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा मांगी गई राशि के नहीं मिलने के कारण परियोजनाओं के क्रिर्यान्वयन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है जिसके कारण योजनाएं निर्धारित उद्देश्यों को हासिल नहीं कर सकी है।
समिति ने कहा है कि इस मंत्रालय को राशि के आवंटन के लिए वित्त मंत्रालय से पुरजोर आग्रह करना चाहिए। वरिष्ठ सांसद हुक्मदेव नारायण यादव की अध्यक्षता वाली समिति ने खेद व्यक्त करते हुये कहा है कि मेगा फूड पार्क योजना के लिये 12वीं योजना के दौरान 1714 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। इनमें से बजट अनुमान स्तर पर केवल 442 करोड़ रुपए आवंटित किए गए तथा योजना अवधि के प्रथम चार वर्ष के दौरान संशोधित अनुमान स्तर पर इसे घटाकर 386.89 करोड़ रूपये कर दिया गया। मंत्रालय की ओर से दावा किया गया था कि यदि अतिरिक्त आवंटन किया गया होता तो वह इस योजना के तहत अधिक राशि का उपयोग करने की स्थिति में था।
फूड पार्कों को रियायती दर पर ऋण उपलब्ध कराने के लिये नाबार्ड में 2000 करोड़ रुपए की एक विशेष निधि का सृजन किया गया है नाबार्ड इस विशेष निधि से मेगा फॅड पार्क परियोजनाओं को ऋण स्वीकृत करने की प्रक्रिया में तेजी लाए इसके लिए मंत्रालय इस पर कड़ी नजर रख रहा है
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