टेलरिंग की दुकान से शुरू किया था काम, आज मोदी के कपड़े बनातें हैं
पिता शुरू से ही धार्मिक प्रवृति के थे।
चौहान ब्रदर्स के पिता जी को टेलरिंग में शुरू से महारत हासिल थी। उन्होंने कई बड़े-बडे़ शहरों में दुकानें खोली थी, लेकिन कहीं भी 3 या 4 साल से ज्यादा टिक नहीं सकी। दुकान ‘चौहान टेलर्स’ के नाम से थी। यह दुकान अहमदाबाद में साबरमती आश्रम के पास स्थापित थी। वह अपनी इस दुकान को ले कर इतने उत्साहित रहते थे कि शहर के सिनेमाघरों में उनकी दुकान के विज्ञापन देते थे। दूसरीं ओर वह पूजा-पाठ और धार्मिक क्रियाओं में अत्यधिक डूबे हुए थे। वे समाज और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहतें थे बल्कि उन्हें अगर कोई इंसान बिना कपडे़ के दिखा जाता बस उसे अपना शर्ट उतारकर दे देते थे।
शिक्षा-
जितेंद्र और उनके दो भाई और दो बहन की शिक्षा का जिम्मा मामा ने ही लिया था। ये सभी शहर के म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ते थे। बिपिन ने साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन किया।
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अहमदाबाद में मामा की ‘मकवाना ब्रदर्स’ से टेलरिंग की दुकान काफी प्रसिद्ध थी। और उस वक्त वहां हर रोज लगभग 100 कुर्ते सिले जाते थे।बिपिन और जितेंद्र दोनों स्कूल से आने के बाद अपने मामा के यहां पर टेलरिंग के काम में भिड़ जाया करते थे। स्कूल के बाद जितेंद्र हर रोज 14 से 15 घंटे काम करते थे और हर रोज 16 शर्ट सिल कर तैयार करते थे जो एक दिन में करना बहुत मुश्किल होता है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों भाईयों ने जॉब करने के बजाए अपने पुश्तैनी काम को ही आगे बढ़ाने का फैसला किया।
1981 मे ‘सुप्रिमों क्लॉथिंग एंड मेंसवेयर’ नाम से अहमदाबाद में टेलरिंग शॉप खोल ली जिसके लिए बैंक से 1.50 लाख का लोन लिया। इसके बाद अहमदाबाद के एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में 250 स्कवायर फीट की दुकान डाल दी। बिपिन शुरू से ही क्रिएटिव थे वहीं जितेंद्र दूर की सोचा करते थे। एक दिन जितेंद्र ने सोचा कि कपड़े सिलने के लिए शहर में तो तमाम टेलर हैं, लेकिन प्रभावशाली लोगों के लिए कपड़े तैयार किए जाए तो हम बहुत जल्दी आगे बढ़ सकतें हैं। कह सकते हैं समय उनके साथ था।
उस वक्त नरेंद्र मोदी एक आरएसएस प्रचारक हुआ करते थे और इन्हीं की दुकान से पॉली फैब्रिक के कपड़े सिलवाया करते थे, क्योंकि उसमें जल्दी से सिकुड़न नहीं आती हैं। उस वक्त शायद ही किसे अंदाजा हो कि यह इंसान एक दिन देश का प्रधानमंत्री बन जाएगा। 1989 के बाद से बड़े लोगों के कपड़े सिलने की वजह से उनकी दुकान को ख्याति मिलने लगी। और धीरे-धीरे शहर के सभी बड़े लोग उनके यहां पर कपडे़ सिलवाने लगे। 1985 में रेडिमेड कपडे़ बनाना शुरू कर दिया था और 9 साल बाद सीजी रोड़ में 2800 स्कवायर फीट की जगह में कमर्शियल सेंटर खोल दिया। इस शॉप का नाम जेडब्लू रखा गया। समय के साथ बिजनेस खासी तरक्की करने लगा और आज देशभर में 51 से ज्यादा रीटेल स्टोर हैं। इसका टर्नओवर ढाई करोड़ से भी ज्यादा का हैं। इस कंपनी में आज 1200 कर्मचारी हैं।
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