क्या ईद बन सकती है राष्ट्रीय भाई-चारे का प्रतीक

माह रमजान के पवित्र माह के बाद आया है ये ईद का पर्व जो दिलों में मिठास घोलने व एक-दूजे को गले लगाकर तन और मन से भी भाई-चारा बढ़ाने का जरिया रहा है। हर धर्म ने मानव उत्थान व एक अच्छे जीवन के लिए अपने धर्मों की स्थापना की। सभी जानते हैं, सबका मकसद एक है। फर्क है तो बस तरीकों का। यह सब जानते हुए भी धर्मों के नाम पर लड़ाईयां लड़ी जाती रही हैं और आज भी जारी हैं। अनेक धर्मों से बना यह भारत देश ’सर्वधर्म समभाव’ के बावजूद दिलों में वह एकपन नहीं ला पाया जो होना चाहिए था।
मंदिर-मस्जिद, देवालयों के नाम पर आज भी इस देश में मार-काट जारी है। धर्म के नाम पर अराजकता फैलाने वाले तत्वों, राजनीतिक बिसात पर धर्मों को दांव पर लगाने वाले विकृत मानसिकता वाले लोगों की वजह से आज भी यह देश आग में जल रहा है। जबकि आम लोग आपस में इतने घुले-मिले हैं कि उनकी अनगिनत मिसाले हैं हमारे देश में। उनका सबका बस एक ही धर्म होता है – मानवता का। धर्म कोई भी हो, पर्व कोई भी हो, सभी मिलकर मनाते हैं।
मुस्लिम धर्म का यह पर्व भी पवित्र रमजान माह के बाद आता है, जिसमें कठिन रोजा रखकर तन-मन की शुद्धता की जाती है, बाद में सभी ईद के दिन गिले-शिकवे दूर कर, गले लगाकर संबंधों को मजबूती प्रदान करते हैं। संबंधों में खुशियां लाने वाला पर्व सिर्फ मुस्लिम धर्म तक ही सीमित न होकर ’सर्वधर्म समभाव’ के रुप में राष्ट्रीय भाई-चारे दिवस के रुप में हम मना सकें तो भारत एक नई इबारत लिख सकेगा। यह बदलाव संपूर्ण भारत की दिशा और दशा दोनों बदलने में कारगार साबित हो सकेगा। दंगे-फसाद, खूनी लड़ाईयों से निकलकर यह देश विकास और बेहतर मानव जीवन की ओर बढ़ सकेगा। यदि ऐसा संभव हो गया तो भारत विश्व बदलाव में भी अहम भूमिका अदा कर सकेगा।