कैसे होते हैं लोन सस्ते और महंगे, पढ़ें पूरी प्रोसेस
#क्या होता है रेपो रेट
जैसा कि मॉनीटरी पॉलिसी आने से पहले चर्चा में था कि आरबीआई रेपो रेट को घटा सकता है लेकिन आरबीआई ने रेपो रेट और अन्य किसी रेट में बदलाव नहीं किए। रेपो रेट को हम इस तरह समझ सकते हैं कि जिस तरह हम हमारे काम के लिए बैंक से लोन लेते है और हमें वो लोन ब्याज सहित चुकाना होता है इस ब्याज की दर को हम आम भाषा में इंट्रेस्ट रेट कहते है।
इसी तरह बैंकों को जरूरत पड़ने पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से लोन लेना पड़ता है। आरबीआई इन्हें तुरंत आसानी से लोन दे देता है लेकिन सिक्योरिटी के फार्म में कुछ चीज़ें रख लेता है। आरबीआई इन्हें एक निश्चित अवधि के लिए लोन देता है और इस पर इंट्रेस्ट भी जुड़ा हुआ होता है। आरबीआई बैंकों को जो लोन देता है उसका इंट्रेस्ट रेट ही रेपो रेट कहलाता है। अगर ये बढ़ जाता है तो लोन महंगे हो जाते है और अगर ये कम हो जाता है तो लोन सस्ते हो जाते है।
*इस समय आरबीआई का रेपो रेट 6.25 है।
#रिवर्स रेपो रेट
जिस तरह हमारे पास पैसे ज़्यादा होते हैं तो हम बैंकों में जमा कर देते है और जरूरत पड़ने पर निकाल भी लेते है बैंक इसके लिए हमें ब्याज भी देता है। ठीक उसी तरह बैंक भी ज़्यादा रकम होने पर आरबीआई में ब्याज़ कमाने के लिए एक निश्चित अवधि के लिए जमा कर देते है। इस पर उन्हें ब्याज तो मिलता है लेकिन एक समय के बाद अगर बैंक को इस समय से पहले जरूरत पड़ जाती है और वो आरबीआई से वो कैश वापस लेते है तो फिर बैंकों को इसमें कुछ हिस्सा छोड़कर आरबीआई से लेना होता है। ये हिस्सा मिलने वाले इंट्रेस्ट से भी ज़्यादा होता है जिसे रिवर्स रेपो रेट कहते है।
ये इस समय रिवर्स रेपो रेट 5.75 पर्सेन्ट है। इसके बढ़ने पर भी लोन महंगे हो जाते है। आपको बता दें कि अगर रेपो रेट बढ़ता है तो रिवर्स रेपो रेट भी बढ़ जाएगा क्योंकि इन दोनों के बीच हमेशा .50 पर्सेन्ट का अंतर होता है। आरबीआई हर .1 पर्सेन्ट को एक बेसिस पाइंट कहती है।
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