शिव और विष्णु में हुआ था भयंकर युद्ध, जानिए कौन जीता
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तब महादेव ने संसार की रक्षा के लिए शरभ अवतार धारण किया। जो वीरभद्र, गरुड़ और भैरव का सम्मिलित स्वरुप था। उसके आठ शक्तिशाली पंजे और शक्तिशाली पंख थे।
शरभ रूप में एक पंख में वीरभद्र एवं दूसरे पंख में महाकाली स्थित हुए, भगवान शरभ के मस्तक में भैरव एवं चोंच में सदाशिव स्थित हुए और शरभ रूपी शिव ने भगवान नरसिंह को अपने पंजों में जकड़ लिया और आकाश में उड़ गये।
शिव अपनी पूंछ में नरसिंह को लपेटकर उसकी छाती में चोंच का प्रहार करने लगे। फिर उन्होंने अपने पंजों से उसकी नाभि को चीर दिया। इससे नरसिंह का मोह नष्ट हो गया। उसका तेज अलग होकर महाविष्णु के रुप में प्रकट हुआ।
नग्न थे शिव, श्रीहरि ने पहनाए थे वस्त्र
जब शिवजी ने शरभ रूप धर विष्णु के नरसिंह अवतार की नाभि को चीरा था तब विष्णु जी ने महादेव से अनुरोध किया कि नरसिंह के चर्म यानी चमड़ी को अपने वस्त्र के रुप में स्वीकार करके सम्मानित करें। इसके बाद महान पशुपति शिव ने उस चर्म को अपने वस्त्र और आसन के रुप में धारण किया और भक्तजनों के हृदय में अपना मोहक स्वरुप प्रकाशित किया। इसके पहले तक वे अपने वास्तविक स्वरुप में यानी नग्न रहना पसंद करते थे। लेकिन उन्होंने श्रीहरि की विनती स्वीकार करके बाघंबर या सिंहचर्म को वस्त्र के रुप में स्वीकार किया।
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