ट्रिपल तलाक का विरोध संविधान के खिलाफ
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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा, कहा-ट्रिपल तलाक का विरोध गलत
नई दिल्ली। तलाक..तलाक..तलाक जैसी महिला विरोधी प्रथाओं और कुरीतियों को खत्म करने के लिए आम लोगों से राय लेने का फैसला लिया गया है। जी हां यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने के लिए लॉ कमिशन ने आम नागरिकों की राय मांगी है। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉबोर्ड इसे सही नहीं मानता। मुस्लिम पर्सनल लॉबोर्ड का कहना है कि आम नागरिक संहिता इस देश के लिए अच्छा फैसला नहीं है। इस देश में कई धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं और हमें उन्हें सम्मान देना चाहिए।
ट्रिपल तलाक पर सरकार का विरोध गलत
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मोहम्मद वली रहमानी ने ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि ’वह यूनिफार्म सिविल कोड लाकर देश को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रिपल तलाक पर सरकार का विरोध गलत है।
बड़े दिल के आदमी थे जवाहर लाल नेहरू
मौलाना रहमानी ने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि जिस अमेरिका की यहां जय की जाती है, वहां भी अलग अलग स्टेट का अपना पर्सनल लॉ है। अलग-अलग आइडेंटिटी है हमारी सरकार वैसे तो अमेरिका की पिछलग्गू है लेकिन इस मुद्दे पर उसको फॉलो नहीं करना चाहती। उन्होंने ये भी कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू बड़े दिल के आदमी थे। इसलिए उन्होंने अलग-अलग ट्राइब्स के लिए संविधान में अलग-अलग प्रावधान रखवाया है।
इन 10 बातों से किया यूनिफार्म सिविल कोड का विरोध…
देश की विविधता बरकरार रहनी चाहिए। ट्रिपल तलाक पर सरकार का विरोध गलत। तीन तलाक पर आयोग का हम बहिष्कार करेंगे। यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान के खिलाफ। देश के भीतर लड़ाई की तैयारी में सरकार। मोदीजी सरहद नहीं संभाल पा रहे हैं। ढाई साल की नाकामियां छुपाने की कोशिश कर रही है सरकार। हम अपनी आवाज बुलंद करेंगे। ऐसा फैसला हम कतई नहीं मानेंगे। पहले दुश्मनों से निपटे मोदी सरकार, अंदर दुश्मन न बनाएं।
क्या हैं नियम
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़े कोई संहिताबद्ध कानून नहीं हैं। ये मुख्य रूप से अंग्रेजों के समय के दो कानूनों द्वारा नियंत्रित होते हैं। पहले 1937 एक्ट में कहा गया है कि भारत के मुसलमान शरिया से संचालित होंगे, लेकिन उसमें यह उल्लेख नहीं है कि शरिया में क्या शामिल है और क्या नहीं। दूसरा है 1939 एक्ट, जिसमें ऐसे 9 कारणों का जिक्र है, जिनके आधार पर एक मुस्लिम महिला तलाक के लिए अदालत जा सकती है। इनके अलावा 1986 का रखरखाव अधिनियम भी है जिसके अनुसार तलाक के बाद मुस्लिम महिला एकमुश्त रखरखाव पाने की हकदार है।
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