जानिए मरने के बाद क्यों विसर्जित करते हैं अस्थियां
हिंदू धर्म के शास्त्रों के अनुसार मृत शरीर को दफनाने का नहीं बल्कि जलाने का रिवाज़ है। लेकिन कभी-कभी मन में सवाल आता है कि शरीर को जलाया ही क्यों जाता है और अस्थियों को नदी में ही क्यों विसर्जित किया जाता है? किसी क़रीबी के दुनिया से चले जाने के बाद भी हमारा मोह उससे बंधा रहता है। ऐसे में उनकी जली हुई राख ही हमारे पास उनकी आख़िरी निशानी होती है और उसे भी विसर्जित कर दिया जाता है। लेकिन रिवाज़ तो रिवाज़ है। इस रिवाज़ की शुरूआत कब और कैसे हुई इसका जवाब जानने के लिए आपको पढ़नी होगी एक छोटी-सी कहानी। तो आइए जानते हैं कौन-सी है वो कहानी…
ये कहानी पुराने ज़माने के एक ऐसे व्यक्ति की है जो काफ़ी निर्दयी था। उसने जीवन भर न तो कोई अच्छा काम किया था और न ही करना चाहता था। वह अपने परिवार वालों के साथ अन्य कई लोगों को परेशान करता। उसके जीवन में शायद पुण्य नाम का कोई अर्थ ही नहीं था, इसलिए वह केवल पाप ही कमाता था। एक दिन अचानक वह पास के एक जंगल में गया जहां वह एक बाघ का शिकार बन गया।
उसके मरने के तुरंत बाद ही यमराज के कुछ सेवक उसकी आत्मा को लेने वहां पहुंच गए और सीधे यमलोक ले गए। अब वहां कुछ बचा था तो उसका मृत शरीर, जिसे काफी हद तक तो बाघ ही खा गया लेकिन बचा हुआ कुछ हिस्सा अन्य छोटे जानवरों का भोजन बना।
इसी बीच कुछ उड़ने वाले जीव भी भोजन की तलाश में उस मृत शरीर के पास पहुंचे। अचानक एक जीव हड्डी के एक टुकड़े को अन्य जीवों से छिपाता हुआ आकाश में उड़ गया, लेकिन उसके ठीक पीछे दूसरा जीव भागा और दोनों में उस हड्डी के एक टुकड़े को हासिल करने का संघर्ष होने लगा।
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