पढ़ें भारत मां के इस शेर की कहानी जिसका ‘दिल मांगे मोर’
कैसे बना कारगिर का शेर
कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा की पोस्टिंग के बाद कैप्टन बत्रा की टुकड़ी ने कारगिल युद्ध में दुर्गम रास्तों से भरी चोटी 5140 पर फतह हासिल की थी। इसी चोटी पर फतह हासिल करके उन्होने ‘ये दिल मांगे मोर’ का उद्घोष किया था। इस चोटी पर फतह करने के बाद उनकी चोटी पर तिरंगा लहराते हुए फोटो मीडिया में आई थी। जिसके कारण वे देशभर में फेमस हो गए थे और सबके फेवरेट बन गए। इस चोटी की फतह के बाद चोटी 4875 को फतह करने का जिम्मा भी उन्हें मिला। उन्होनें अपनी जान की परवाह न करते हुए कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा और जीत हासिल की। उनके इसी साहस और वीरता ने उन्हे कारगिल का शेर बनाया। उनके पिता जी. एल. बत्रा बताते है कि ‘‘उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाय.के.जोशी ने विक्रम को शेर शाह उपनाम से नवाजा था।’’
‘जय माता दी’ बोलकर मौत को लगाया गले
जब उनका मिशन लगभग पूरा हो चुका था। तभी अपने कनिष्ठ अधिकारी लेफ्टिनेंट नवीन को बचाने के लिए गए। लड़ाई के दौरान एक ब्लास्ट में नवीन के दोनो पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे। कैप्टन बत्रा लेफ्टिनेंट नवीन को बचाने के लिए उन्हे घसीट कर पीछे ले जा रहे थे तभी दुश्मन की गोली उनके सीने पर लगी और वे ‘जय माता दी’ कहते हुए शहीद हो गए।
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