इंजीनियरिंग पास कर के मल्टीनेशनल कंपनी में काम करना कुछ समय पहले हर दूसरे छात्र का सपना होता था और आज यह रूझान तेजी से कम होता जा रहा हैं। सूत्रों के मुताबिक इस साल मध्यप्रदेश में 79000 उपलब्ध सीटों में से अभी तक केवल 21000 सीटों पर ही रजिस्ट्रेशन हुआ हैं।पिछले साल करीब 37000 इंजीनियरिंग सीटें खाली रह गई थी. 2016-17 में प्रदेश के 70 इंजीनियरिंग कॉलेजों में लगभग 147 शखाओं में एक भी एडमिशन नहीं हुआ था। बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में 85 प्रतिशत से भी कम सीटों पर एडमिशन्स हुए थे.
सूत्रों के मुताबिक बीई पार्ट टाइम कोर्सेज़ में भी छात्रों की दिलचस्पी घटती जा रहीं है। इस वर्ष कुल 18 कॉलेज बंद हुए है। वहीं दूसरी और कुछ कॉलेजों ने अपनी सीटों को सरेंडर कर दिया है। वर्ष 2017-18 के शैक्षणिक वर्ष में लगभग 50 हजार सीटें खाली रहने की उम्मीद जताई जा रहीं हैं। आज के समय में बीई पार्ट टाइम में 120 साटों में से केवल 16 छात्रों ने प्रवेश लिया हैं। इससे हम अंदाजा लगा सकते है कि आज इंजीनियरिंग पढ़ाई की प्रदेश में क्या स्थिति हैं। पिछले साल राज्य में करीब 187 कॉलेजो में बीई की 79565 सीटें थीं जिसमें 42049 सीटें रिक्त रह गई थी।
इन सभी के पीछे यह कारण माना जा रहा है कि कुछ सालों से इंजीनियरिंग में प्लेसमेंट की खराब हालत के चलते छात्र आर्टस-साइंस और कॉमर्स स्नातक जैसे फाउंडेशन कोर्स पर लौट रहे हैं और अलग-अलग सेक्टर मेंं करियर बना रहें है। ‘‘मार्क्स का कोई न्यूनतम कटऑफ नहीं है अधिकतर कॉलेज छात्रों को प्रवेश के बाद उनकी टेक्निकल स्किल्स और परिपूर्ण विकास पर ध्यान देने की जगह सिर्फ डिग्री बांटने का काम कर रहे हैं। जॉब नहीं मिलने की ग्यारंटी सबसे बड़ा डर रहता है जिससे छात्र बहुत जल्दी डिप्रेशन या फ्रस्टेशन में आ जाता है। इन्हीं वजहों से छात्र अलग सेक्टर चुन रहे है जहां आज भी जॉब मिल सकती हो साथ ही भविष्य में भी जॉब खोने का डर नहीं हो।
हालांकि वास्तविक स्थिति 30 जुलाई 2017 को फाइनल काउंसलिंग के बाद ही सामने आएगी।
अर्चना सक्सेना – असिस्टेंट प्रोफेसर , सागर इंस्टिट्यूट