आज भी भारत में ऐसी जनजातियां हैं जो अस्तित्व के लिए झगड़ रही है, जिनकी वास्तविकता प्रगति की ओर ताकतवर कदम उठा रहे भारत देश के चेहरे पर काला धब्बा लगा देती हैं। इन्हीं मे से एक है बेड़िया समाज। मप्र के बुंदेलखण्ड के इतिहास में बेड़िया समाज की बेड़नियों से जुड़े कई किस्से-कहानियां हैं। इस समाज में स्त्री की दशा बाडे़ में बांधकर रखी जाने वाली गाय के समान होती है जिसे यदि किसी दिन घूमने-फिरने के लिए बाडे़ से बाहर जाने दिया जाए तो कोई भी व्यक्ति सहजता से उसके गले में अपनी रस्सी डालकर घर ले जा सकता है।
बाकायदा बनाया जाता है लड़की को बेड़नी
मध्यप्रदेश में स्थित पथरिया, लिधोरा, लुहारी हबला, फतेहपुर, बिजावर, देवेंद्रनगर जैसे कुछ गांव हैं जहां बेडिया समाज रहता है। इन परिवारों के आय का मूल स्रोत उस परिवार की औरत होती है जिसे बाकायदा बेड़नी बनाया जाता है, उस एक बेड़नी पर दस-बीस लोगों का परिवार निर्भर रहता है। हजार भर की आबादी वाले बेड़िया गांव में लगभग पचास के आसपास बेड़नियां रहती हैं जो नृत्य और शरीर विक्रय कर अपने सारे कुनबे-परिवार का पालन-पोषण करती हैं।
नहीं मिलता पत्नी का दर्जा
बेड़िया समाज में कोई स्त्री जानबूझकर शरीर विक्रय नहीं करती, न ही रखैल बनना चाहती है और न ही नृत्य करना चाहती है। इनकी पिछड़ी स्थिति, अशिक्षा, आर्थिक स्थित और परंपराएं इन्हें इस ओर लेकर जाती है जो सहजता से होता है। वर्षों से परंपरा के नाम पर ऐसे ही हो रहा है इसीलिए इसमें उन्हें कुछ गलत भी नहीं लगता। जिन ठाकुरों, जमींदारों, पैसे वालों एवं ताकतवरों की वे रखैल होती हैं वह बेड़नियों को औरत का दर्जा तो देता है पर दूसरी पत्नी का नहीं, चाहे वह औरत कितनी भी ईमानदारी से उससे जुड़ी हो।
अकेले चलाती हैं घर
बाहरी समाज में जैसे स्त्री-पुरुष हैं वैसे ही बेड़ियां समाज में स्त्री-पुरुष हैं परंतु दोनों की मानसिकता में बड़ा अंतर है। सामाजिक स्थितियां, दबाव ,परंपराएं और आत्मविश्वास की कमी, इन पुरुषों और औरतों को दयनीय स्थिति से उभरने नहीं देते। बेड़ियां जाति का पुरुष पूरी तरह से नाकारा होता है। वह अपनी बीवी, बहन, मां, बेटी से कमाया खाना खाता है और केवल खाता ही नहीं बल्कि शराब एवं अन्य गतिविधियों में उसकी कमाई रकम को उड़ाता भी है। उसका मन कभी भी मेहनत और स्वाभिमान की जिंदगी नहीं चाहता।
बेटी के जन्म पर होता है स्वागत
जिस देश की तमाम जनता स्त्री भ्रूण हत्या करने पर तुली है उसी देश की एक जनजाति बेड़िया स्त्री जन्म का स्वागत बड़ी खुशी के साथ करती है। उसका कारण है इस जाति में लड़की ही परिवार का मुख्य आधार और पालनकर्ता होती है। इनमें पुरुष शराबी, जुआरी, अकर्मण्य रहा है अतः उसे नकारा जाता है और लड़की का स्वागत किया जाता है।
शादी के बाद मिलती है वैश्यावृत्ति से मुक्ति
बेड़िया समाज में सालों से वेश्यावृत्ति होती आ रही है। यहां के परिवारों के लिए यह आम चलन है। बेटियां होने पर खुशियां और बधाईंयां बांटने वाला यह समाज राई नृत्य का प्रवृतक रहा है। इन्हीं समाजों में जब लड़कियां वेश्यावृत्ति से छुटकारा पाना चाहतीं हैं तो विवाह के लिए वर की तलाश करती हैं। यह बात कितनी सत्य है इसके बारे में कोई नहीं जानता लेकिन कहा जाता है कि बेड़नियां राई नृत्य के जरिए अपना दूल्हा तलाशतीं हैं जो उन्हें वेश्यावृत्ति के नर्क से निकालकर ले जाए। शादी के बाद समाज की लड़कियां वेश्यावृत्ति नहीं करतीं।