सिंहस्थ कुंभ में स्नान से चमकेगा भाग्य
कल यानी 22 अप्रैल से सिंहस्थ का पहला स्नान शुरू हो जाएगा। दूर-दूर से लोग महाकाल की नगरी उज्जैन में स्नान करने आएंगे। लेकिन शायद आप नहीं जानते होंगे कि सिंहस्थ में स्नान करने का क्या महत्व है? ये 12 वर्षों के अंतराल में ही क्यों मनाया जाता है? ये इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में ही क्यों मनाया जाता है? ऐसे कई सवाल होंगे जो आपके मन में उठ रहे होंगे। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जिन्हें आप जानना चाहते हैं…
इलाहाबद, नासिक, हरिद्वार, और उज्जैन में ही क्यों मनाया जाता है कुंभ
बारह राशि में देव गुरु (बृहस्पति) प्रत्येक राशि में एक-एक वर्ष का वास करते हैं। जब सिंह राशि में गुरु (बृहस्पति) होते हैं, उस समय होने वाला पर्व ’सिंहस्थ पर्व’ कहलाता है। समुद्र मंथन के उपरान्त देव और दानवों के युद्ध के बाद देवताओं को अमृत कलश यानी अमृत से भरे कुम्भ की प्राप्ति हुई। यही अमृत से पूर्ण भरा कुम्भ सम्पूर्ण भारत में चार स्थानों पर जिनमें उज्जैन, इलाहबाद, हरिद्वार और नासिक में छलका, फलस्वरूप इन चारों नगरों में कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। अर्थात अमृत बूंदों से अमृतमयी हुए इन चारों नगरों में ही सिंहस्थ अथवा कुम्भ का आयोजन होता है जो कि 12 वर्षों में एक बार होता है।
12 वर्षों बाद ही क्यों मनाया जाता है
समुद्र मंथन के फलस्वरूप प्राप्त हुए अमृत कलश को लेकर देवताओं व दानवों में भयंकर संग्राम छिड़ गया। यह संग्राम देवताओं के 12 दिन अर्थात मनुष्यों के 12 वर्ष तक चला था। अमृत कलश संरक्षण में सूर्य, चन्द्र और गुरु के विशेष प्रयत्न रहे थे इस कारण इन तीन ग्रहों की विशिष्ट स्थिति में साथ ही बारह वर्षों में एक बार सिंह राशि में गुरु बृहस्पति के आने से 12 वर्षों के अंतराल में कुम्भ महापर्व आयोजित होता है।
सिंहस्थ कुंभ में स्नान क्यों
सिंहस्थ कुम्भ महापर्व अद्भुत और विरल ग्रह योगों की विशिष्ट स्थिति में ही मनाया जाता है जो कि 12 वर्षों में एक बार होता है। विश्व के इस सबसे बड़े धार्मिक पर्व में सबसे ज्यादा महत्त्व स्नान का है। मान्यतानुसार सिंहस्थ स्नान समस्त पापों से विरक्त कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। साथ ही विभिन्न धर्म एवं पंथों के धर्माचार्य, साधु संत एकत्रित हो एक बेहद विरल और अद्भुत वातावरण प्रस्तुत करते हैं। नित्य धर्मचर्चा, कथा, पुराण का आयोजन, भजन कीर्तन, प्रवचन, यज्ञ, अनुष्ठान, शास्त्रार्थ आदि का आयोजन समस्त शिविरों में होता है। ऐसा उत्कृष्ट अनुभव सिर्फ सिंहस्थ ही दे सकता है।
सिंहस्थ कुंभ में अखाड़ों का महत्व
साधु संतों का आगमन ही सिंहस्थ की शोभा है। ये साधु संत अलग-अलग अखाड़ों तथा मठों से आते हैं। धर्म संरक्षण दायित्व पालन में सन्यासियों द्वारा शास्त्र को छोड़ कर शस्त्र लेने की आवश्यकता ने अखाड़ों को जन्म दिया। दशनामी साधु समाज के 7 अखाड़े हैं, तीन उदासीन अखाड़ों और तीन वैष्णव अखाड़ों समेत कुल 13 अखाड़े हैं जो विशाल जनसमुदाय को आकर्षित कर सांस्कृतिक परंपराओं का संवर्धन करते हैं।