महाभारत में इन स्त्रियों की हुई थी धोखे से शादी
हज़ारों सालों से चल रहा है पुरुषों द्वारा स्त्रियों को धोखा देने का चलन
देखा जाए तो महाभारत दो परिवारों की ऐसी कहानी है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने एक बेहतरीन कूटनीतिज्ञ की भूमिका निभाई थी। हालांकि वे कहीं-कहीं एक दोस्त और सलाहकार के रूप में भी दिखाई दिए लेकिन महाभारत की कहानी में उनकी भूमिका मुख्य तौर पर कूटनीतिज्ञ की ही दिखाई दी।
भीष्म पितामह अगर सत्यवती और अपने पिता शांतनु के विवाह को संपन्न करवाने के लिए आजीवन अविवाहित रहने और केवल राजगद्दी पर बैठे राजा की सेवा करने जैसी प्रतिज्ञा ना लेते तो शायद महाभारत की यह कहानी, कुरुक्षेत्र का वो भीषण युद्ध घटित होना असंभव था।
ख़ैर जो होता है भले के लिए ही होता है। फिलहाल यहां हम आपको बताने जा रहे हैं महाभारत की ऐसी शादियों के बारे में जो मात्र एक धोखा थीं।
द्रौपदी
स्वयंवर से पहले ही द्रौपदी सूतपुत्र कर्ण को पसंद करने लगी थीं। लेकिन परिवार की मर्यादा का ध्यान रखते हुए उन्होंने अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी थी। अर्जुन के साथ विवाह करने के बाद वे अन्य सभी पांडवों की भाभी बन गईं लेकिन कुंती के कहने पर उन्हें वस्तु के रूप में पांचों भाइयों में बांट दिया गया और वे सभी पांडवों की पत्नी बन गईं। इस तरह निश्चित तौर पर ये द्रौपदी के साथ धोखा हुआ।
अंबा
दूसरी कहानी उन तीन बहनों अम्बा, अंबिका और अंबालिका की है जिनका अपहरण स्वयं भीष्म यानी देवव्रत ने किया था ताकि वे उनका विवाह अपने सौतेले भाइयों विचित्रवीर्य और वीर्यसेन के साथ करवा सकें। दोनों ही भाई शारीरिक रूप से काफी कमजोर थे, इसलिए उन्हें तीनों बहनों के स्वयंवर में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। क्रोध में आकर भीष्म ने उन तीनों बहनों को स्वयंवर से ही अगवा कर लिया और उनमें से दो का विवाह जबरन अपने भाइयों से करवाया। जब भीष्म को पता चला कि अंबा, राजा शाल्व से विवाह करना चाहती है, उसे मन ही मन अपने पति मान बैठी है तो भीष्म ने अंबा को जाने दिया। परंतु जब अंबा, राजा शाल्व के पास पहुंची तब उसे अपनाया नहीं गया। जब वह भीष्म के पास आई तो भीष्म ने भी उसे अपनी प्रतिज्ञा की बात कहकर नहीं अपनाया। निश्चित तौर पर इस धोखे ने अंबा के जीवन को तबाह कर दिया।
अंबिका और अंबालिका
अंबिका और अंबालिका के साथ विवाह करने वाले दो राजकुमार विचित्रवीर्य और वीर्यसेन शारीरिक रूप से अक्षम थे और विवाह के कुछ समय बाद ही उनकी मृत्यु भी हो गई। उसके बाद नियोग के द्वारा वेद व्यास की सहायता से उन दोनों के पुत्र उत्पन्न हुए जिनका नाम धृतराष्ट्र और पांडु रखा गया। इन बच्चों के सहारे ही उन दोनों स्त्रियों ने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया।
भानुमति
कंबोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री भानुमति के स्वयंवर में कर्ण, दुर्योधन, रुक्मी आदि सभी शामिल थे। स्वयंवर के समय अपने लिए उचित वर की तलाश करते हुए भानुमति दुर्योधन के पास रुकी और फिर आगे बढ़ गई। दुर्योधन को यह बात बहुत बुरी लगी, उसके लिए यह उसका अपमान था। इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने जबरन भानुमति की वरमाला छीनकर अपने गले में डाल ली। जब अन्य राजाओं ने इसका विरोध किया तब उसने कर्ण को सभी प्रतिद्वंदियों से युद्ध करने के लिए कहा। युद्ध में कर्ण ने सभी को परास्त कर दिया और भानुमति को युद्ध रूपी स्वयंवर में जीतकर दुर्योधन की दुल्हन बनाया। निश्चित तौर पर यह भानुमति के साथ छल और अन्याय था।
गांधारी
धोखे से विवाह की एक अन्य कहानी स्वयं धृतराष्ट्र और गांधारी के विवाह से भी जुड़ी है क्योंकि विवाह निर्धारित होने से पहले तक गांधारी यह नहीं जानती थी कि जिससे वह विवाह करने जा रही है वह जन्मांध है। यह गांधारी के साथ एक धोखा था। जब यह बात गांधारी को पता चली तो परिवार के सम्मान को बचाने के लिए उसने इस विवाह को स्वीकार कर लिया।