इंसान की ही तरह तिरंगे का भी होता है ‘अंतिम संस्कार’
‘रिपब्लिक डे’ यानी कि ‘गणतंत्र दिवस’ हम भारतीयों के लिए बहुत माइने रखता है। आख़िर यहीं तो वह दिन था जब भारत ने अंग्रेजो के नियमों को तोड़ अपने नियमों को लागू किया था। जिसकी बदौलत आज 67 साल बीत जाने देश का हर नागरिक स्वतंत्र रूप से अपनी लाइफ जी रहा है। इसी आज़ादी का जश्न मनाने के लिए हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त के मौके पर हम तिरंगा फहराते हैं। 15 अगस्त को जहां हम अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद हुए थे तो वहीं 26 जनवरी को उनके बचे हुए कुछ नियमों से।
लेकिन क्या आपको पता है कि जो तिरंगा हमें आज़ाद होने का सुकून देता है तो उसे भी एक दिन इंसान की ही भांति अंतिम विदाई देनी होती है। चलिए आपको बताते हैं कि कब और कैसे तिरंगे को अंतिम विदाई दी जाती है।
जब तिरंगे का स्वरूप बदल जाए
-जब तिरंगा अमानक, बदरंग, कटा-फटा और इस स्वरूप में बन जाए कि उसे फहराना मुश्किल हो तब। ऐसी स्थिति में झंडा फहराना ध्वज का अपमान माना जाता है।
-शहीदों और देश की महान शख्सियतों के शवों को सम्मान देने के लिए तिरंगे में लपेटा जाता है। इस दौरान केसरिया पट्टी सिर की तरफ एवं हरी पट्टी पैरों की तरफ़ होती है। शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के शव के साथ ध्वज को जलाया या दफनाया नहीं जाता बल्कि मुखाग्नि क्रिया से पहले या कब्र में शरीर रखने से पहले ध्वज को हटा लिया जाता है।
ऐसे किया जाता है तिरंगे का अंतिम संस्कार
अधिक समय होने की वजह से जब तिरंगे की हालत ख़राब हो जाती है तो उसे नष्ट करना होता है। इसके लिए उसे गोपनीय तरीके से सम्मान के साथ जला दिया जाता है या फिर वजन बांधकर पवित्र नदी में जल समाधि दे दी जाती है। वहीं शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के पार्थिव शरीरों पर से उतारे गए ध्वजों के साथ भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।
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