सिंहस्थ महापर्व सामाजिक सरोकारों और बदलाव का मंथन
By Anup Poranik
सिंहस्थ कुम्भ महापर्व एक विशाल आध्यात्मिक आयोजन है। जो मानवता के लिए जाना जाता है। इसके नाम की उत्पत्ति ‘‘अमरत्व का पात्र‘‘से हुई है। सिंहस्थ र्सिफ एक पर्व ही नहीं है, उससे कहीं ज्यादा यह जीवन के सही मूल्यों को समझने एवं सनातन परम्परा के र्निवाहन का एक अदभुत अवसर है। उज्जैन में आयोजित होने वाले इस भव्य समारोह के लिए विभिन्न पारम्परिक कारक खोजे जा सकते हैं। भागवत पुराण,विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण आदि महान ग्रन्थों में भी अमृत कुंड और अमृत कलश का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवता और असुरों द्वारा किये गये ‘समुद्र मंथन‘ से अमृत कलश की प्राप्ति हुई थी। यह सिंहस्थ महापर्व र्सिफ एक धार्मिक महाकुंभ ही नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों से जुड़ा महानुष्ठान बना है। यहाँ धर्म-अध्यात्म ,वेदों की ऋचाओ और पुराणों के सार के साथ संतो और महंतों ने सामाजिक जनचेतना को जाग्रत करने की दिशा में विभिन्न प्रकल्प और अभियान चलाए हैं।
कहा जाता है कि सिंहस्थ कोई पर्व या उत्सव नहीं। इससे भी अद्यिक यह एक अवसर है सांसारिक जीवन में रहते हुए दिव्य ज्ञान को समझने का। सिंहस्थ हमें अवसर प्रदान करता है शार्स्त्राथ निहित उस रास्ते पर चलने के लिए जिसके लिए हमें मानव जीवन प्राप्त है। इस बार का सिंहस्थ पिछले सिंहस्थ से कुछ अलग है इस सिंहस्थ में धर्म की डुबकी के साथ सामाजिक जनजागरण का माध्यम भी बना है ,विभिन धार्मिक पंडालों में प्रवचनों के साथ पर्यावरण संरक्षण, विश्वशांति – समभाव, स्वच्छता अभियान, भ्रुण हत्या, बेटी बचाओ बेटी पढाओ और क्षिप्रा शुद्धिकरण को लेकर जन समुदाय को जाग्रत करते हुए संत दिखाई देते हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हमेशा सकारात्मक प्रयासों के जरिये सामाजिक बदलाव लाने का प्रयास किया। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की सर्वोच्च प्राथमिकता वाले इन सभी सामाजिक अनुष्ठानों को साधु-संतों का मार्गदर्शन मिलने से समाज को धार्मिक सम्बल भी मिला है। देश के प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी ने भी बीते सप्ताह मन की बात में सिंहस्थ का जिक्र करते हुए कहा था कि ‘‘मैं मानता हूँ ये कुंभ मेला, भले धार्मिक, आध्यात्मिक मेला हो, लेकिन हम उसको एक सामाजिक अवसर भी बना सकते हैं। संस्कार का अवसर भी बना सकते हैं वहाँ से अच्छे संकल्प, अच्छी आदतें लेकर के गाँव-गाँव पहुँचाने का एक कारण भी बन सकता है, हम कुंभ मेले से पानी के प्रति प्यार कैसे बढे़, जल के प्रति आस्था कैसे बढ़े, जल-संचय का संदेश देने में कैसे इस कुंभ मेले, का भी उपयोग कर सकते हैं, हमें करना चाहिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कही बात सिंहस्थ में अक्षरशः साकार हो रही है। सिंहस्थ को मानव जाती के कल्याण करने का माध्यम और मंथन का सार बनाने की कोशिश सरकार के साथ सिंहस्थ में पधारे संत मुनियों और अखाड़ों के प्रमुखों ने जनजाग्रति अभियान के जरिये की है। दुनिया को मानवीय मूल्यों की रक्षा का संदेश देने के मामले में इस बार का सिंहस्थ अतीत के तमाम महाकुंभों से अनूठा और नयापन लिए हुए है। जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी महाराज और परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू स्वामी चिदानन्द सरस्वती पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण के साथ-साथ खुले में शौच नहीं करने व सदैव शौचालय का प्रयोग करने का संदेश श्रद्धालुओं को दे रहे हैं। इन धर्म गुरुओं के साथ ही समूचे मेला क्षेत्र में जगह-जगह जन जागरूकता के संदेश देते र्होडिंग्स भी लगे हुए हैं। र्होडिंग्स में केंद्र सरकार के ‘स्वच्छ भारत-एक कदम स्वच्छता की ओर ‘जैसे स्वच्छता अभियान का जिक्र है तो नदियों के संरक्षण के मामले में सरकार के साथ समाज को जुड़ने का संदेश देते र्होडिंग में लिखा है – ‘कितनी पावन हैं ये नदियाँ,चाहे गंगा हो या क्षिप्रा। वृक्षारोपण के प्रति जन जागरण की दृष्टी से परर्माथ निकेतन द्वारा मोक्षदायिनी क्षिप्रा के आंचल को हरियाली की चादर ओढ़ाने के लिए डेढ़ लाख पौधे रोपे जायेंगे।
घटता लिंगानुपात सभ्य और उन्नतशील समाज की हकीकत को बंया करता है। दिन प्रतिदिन घट रहा लिंगानुपात समाज के लिए चिंता का विषय है। महाकुंभ में भगवान शनि के उपासक दाती महाराज ने बेटी बचाने के संकल्प का शंखनाद किया है। पूरे सिंहस्थ क्षेत्र में बेटी बचाने का संदेश देते दाती महाराज के र्होडिंग लगे हैं, जिसके माध्यम से समाज को बेटियों को बचाने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं। ‘ग्रीन सिंहस्थ-क्लीन सिंहस्थ‘का नारा अब विदेशी श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है। विदेशी श्रद्धालु भी सिंहस्थ मेला क्षेत्र में स्वच्छता बनाये रखने में योगदान दे रहे हैं। श्री अलखपुरी सिद्धपीठ परम्परा के रानीबाग स्थगित सिंहस्थ शिविर में विश्वगुरू स्वामी श्री महेश्वरानन्दजी के शिविर में काफी संख्या में विदेशी श्रद्धालु आये हुए हैं। इस शिविर में विदेशी श्रद्धालुओं को साफ-सफाई करते, योग, आसन, ध्यान करते सहज ही देखा जा सकता है। चेकोस्लवाकिया से आई विदेशी श्रद्धालु सलोरा केइ जिसका भारतीय नाम यशोदा है जो हाथो में झाड़ु थामे नियमित रूप से साफ-सफाई करती दिखाई देती हैं। इसी तरह अन्य शिविरों में अनेक विदेशी श्रद्धालु रसोई, अन्नक्षेत्र एवं अन्य सेवार्कायों में पूरी तत्परता, तन्मयता एवं निष्ठा के साथ सेवाएं दे रहे हैं। संतों के विभिन्न सामाजिक अभियान से जनता में जागृति आएगी और प्रदेश में इन सबका बेहतर क्रियान्वयन कराने में सरकार को भी मदद मिलेगी। सिंहस्थ 2016 में हो रहे विभिन्न सामाजिक सरोकारों से जुडे़ अभियानों के मंथन से निष्चित रूप से मानव जाती को नई सकारात्मक दिशा देने का अमरत्व प्राप्त होगा।