सवा सौ करोड़ देशवासियों का यह देश, टैक्स चुकाने के मामले में बेहद ही पीछे है। बजट सत्र 2017 के करीब आए एक आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 5 करोड़ लोग आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं जबकि इनमें से 2 करोड़ लोग इनकम टैक्स के रुप में 1 रुपया तक नहीं चुकाते। सरकारी अध्यननों के मुताबिक जितने लोग देश में आयकर चुकाते हैं तो उतने ही लोग टैक्स चोरी भी करते है।
लोगों को टैक्स चुकाने की ओर प्ररित करने के लिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में लाने के लिए सरकार जनधन योजना, डिटिटलाइजेशन, आधार कार्ड को अनिवार्य करने समेत कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। इन कदमों में से एक है जीएसटी। जीएसटी के लागू होने से मल्टीपल टैक्स स्ट्रक्चर सिस्टम ख़त्म होगा। इसके अलावा कई ऐसे फायदे होंगे जिसकी वजह से इसे सबसे बड़ा कर सुधार माना जा रहा है। पर क्या आप जानते हैं कि जीएसटी कबसे शुरू हुआ और क्यों शुरू हुआ। तो आपको बता दें कि जीएसटी का ये सफर डेढ़ दशक से लंबी कोशिशों की कहानी है। जीएसटी की शुरुआत की नींव पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह के कार्यकाल में पड़ी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इसे मूर्त रूप दिया गया। हालांकि राजनीतिक गतिरोध और गठबंधन की मजबूरियों की वजह से मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका।
जीएसटी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में लागू होने जा रहा है। संसद के केंद्रीय कक्ष से 30 जून की आधी रात को इस कानून को देश में लागू कर दिया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में उन लोगों की भूमिका को समझना जरूरी हो जाता है, जिनकी कोशिशों के बाद देश को जीएसटी मिलने जा रहा है।
पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह के कार्यकाल में हुई पहल
जीएसटी जैसे कर व्यवस्था की नींव वीपी सिंह की सरकार के कार्यकाल में पड़ी थी। सिंह ने MODVAT टैक्स प्रणाली को संसद में पेश किया था। यह टैक्स कुछ हद तक जीएसटी जैसा ही था। हालांकि इस दिशा में कुछ खास पहल नहीं हो पाई लेकिन इसने देश में जीएसटी जैसे टैक्स सिस्टम की नींव रख दी।
प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उठाए कदम
इसके बाद इस दिशा में दूसरी बड़ी पहल पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के समय में हुई। वाजपेयी ने बनाई पहली समिति, सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी ने जीएसटी पर चर्चा के लिए मंजूरी देते हुए जीएसटी मॉडल और रोडमेप तैयार करने के लिए एक कमेटी का गठन किया था। इसके बाद 2004 में वित्त मंत्रालय के तत्कालिक सलाहकार विजय एल केलकर की अगुवाई में काम कर रही टास्क फोर्स ने देश के मौजूदा टैक्स सिस्टम में कई संरचनागत खामियों का जिक्र करते हुए सरकार को जीएसटी का सुझाव दिया। इसके बाद जीएसटी जैसी व्यवस्था को लेकर एक दिशा मिल गई।
मनमोहन के कार्यकाल में हुए अहम बदलाव
जीएसटी को लागू किए जाने की दिशा में सबसे अहम और तेज बदलाव पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देखने को मिला, जब 2005-2006 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पहली बार इसे लागू किए जाने का जिक्र किया। बजटीय भाषण में उन्होंने पूरे प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन को एक नेशनल वैट या बेहतर गुड्स एंड सर्विसेज के तहत लाए जाने की अपील करते हुए देश में 1 अप्रैल 2010 से जीएसटी लागू करने की बात की।
हालांकि उनकी इस घोषणा के दौरान तत्कालिक वित्त मंत्री के सलाहकार पार्थसार्थी शोम ने राज्य सरकारों को जीएसटी के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव करने की सलाह दी थी। शोम ने इस दौरान केंद्र और राज्य के बीच बातचीत के लिए सेंट्रल सेल्स टैक्स की भरपाई का मुद्दा बताया था। हालांकि राज्यों के विरोध को लेकर बातचीत रफ्तार नहीं पकड़ नहीं पाई। फरवरी 2007-08 में केंद्रीय बजट भाषण के दौरान एक बार फिर से जीएसटी को दोबारा लागू करने की बात कही गई और 1 अप्रैल 2010 की तारीख तय की गई।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आगे बढ़ाए कदम
सरकार बनने के बाद करीब 7 महीने बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इस बिल को संसद में पेश किया और कांग्रेस ने फिर से इस बिल को स्थायी समिति के पास भेजने की बात कही। 2015 फरवरी में संसद में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार अप्रैल 2016 से जीएसटी लागू करना चाहती है। इसके बाद विपक्षी दलों और राज्यों को लेकर चर्चा का लंबा दौर शुरू हुआ।
कांग्रेस को मनाने की कोशिशें शुरू हुई और फिर उसके सहयोग से सरकार मई 2015 में लोकसभा में जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पारित कराने में सफल हुई। हालांकि कांग्रेस की तरफ से चार महत्वपूर्ण संशोधनों को शामिल किए जाने के बाद ही इस बिल को राज्यसभा से पास कराया जा सका। अब जीएसटी हकीकत बन चुका है जिसे 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में लागू किया जा रहा है।
आखिर क्यों लाया गया जीएसटी?
- वन नेशन वन टैक्स वन मार्केट की तर्ज पर जीएसटी को लागू करने का मकसद है पूरे देश में एक ही कर व्यवस्था को अपनाया जा सके।
- ज़्यादा कर हटा कर लोगों की परेशानी कम हो सके और वो कर चुकाने के लिए प्रोत्साहित हो सके।
- वन नेशन वन टैक्स के ज़रिए जब देश में सभी सामानों की दर एक ही हो जाएगी तो महंगाई और कालाबाज़ारी जैसी चीज़ों पर रोक लगेगी।
- टैक्स ढांचा मज़बूत होगा और साथ ही देश की वित्तीय सेहत भी बेहतर हो सकेगी।
- मल्टीपल टैक्स फाइलिंग ख़त्म होगी और व्यापारियों और कारोबारियों को टैक्स दायर करने के लिए कई जगह दस्तावेज नहीं भरने होंगे और एक ही बार में टैक्स फाइलिंग की जा सकेगी।
इससे टैक्स फाइलिंग आसान होगी और ज़्यादा से ज़्यादा लोग टैक्स फाइल करने की ओर प्रेरित होंगे, सरकार का राजस्व बढ़ेगा और अब तक देश में चल रही कर की जटिल प्रक्रिया ख़त्म होगी।