Friday, September 15th, 2017 08:41:57
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अब प्रमोशन में आरक्षण नहीं : हाइकोर्ट

Business

मध्यप्रदेश में प्रमोशन पर आरक्षण सिस्टम पर कोर्ट ने रोक लगा दी है। जी हां पिछले दिनों प्रमोशन में आरक्षण संबंधी याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने शनिवार को यह फैसला सुनाया। अदालत ने वर्ष 2002 के बाद के सभी प्रमोशन में आरक्षण खत्म कर दिया है।

आरक्षण है गलत

कोर्ट ने इस फैसले पर कहा कि नियुक्तियों के दौरान समाज के पिछड़े और वंचित वर्ग को नियमानुसार आरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन प्रमोशन में आरक्षण गलत है। इसकी वजह से वास्तविक योग्यता वालों में कुंठा घर कर जाती है।

सिविल सर्विसेज प्रमोशन रूल 2002

वहीं हाईकोर्ट ने सिविल सर्विसेज प्रमोशन रूल 2002 को भी खारिज कर दिया है। इस नियम के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति को प्रमोशन में 36 फीसदी तक आरक्षण दिया जाता है।

सरकार के विरूद्ध फैसला

आपको बता दें कि हाईकोर्ट के इस फैसले से प्रदेश के करीब 20 हजार से अधिक कर्मचारियों पर असर पड़ेगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि उनकी सरकार शासकीय सेवाओं में प्रमोशन में आरक्षण की पक्षधर है। उन्होंने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण खत्घ्त करने के संबंध में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर द्वारा जो निर्णय दिया गया है, उसके विरुद्ध राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी।

सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी

पदोन्नति में आरक्षण खत्म करने को लेकर हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के बाद प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का निर्णय लेने के बाद मुख्य सचिव अंटोनी डिसा ने जीएडी और विधि विभाग से राय मांगी है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में एक अलग वकील नियुक्त करने का निर्णय भी लिया गया है। पदोन्नति में आरक्षण संबंधी नियमों को खंगालना शुरू कर दिया है।

आरक्षण देने का कोई जिक्र नहीं

पूर्व महाधिवक्ता आरडी जैन का कहना है कि संविधान में आरक्षित वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण देने का कोई जिक्र नहीं है। सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2007 में ही इस मामले को डिसाइड कर चुका है। इसे होल्ड पर रखा गया है। सरकार यदि सुप्रीम कोर्ट जाती है तो उनका पक्ष कमजोर रहेगा।

क्या है मामला

भोपाल के आरबी राय, एससी पांडे, एमपी इलेक्ट्रिसिटी प्रोडक्शन कंपनी, एसके गुप्ता सहित सामान्य वर्ग के अन्य कर्मचारियों की ओर से 2011 व इसके बाद उक्त नियम की संवैधानिकता को कठघरे में रखा गया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रविनंदन सिंह, मनोज शर्मा ने कोर्ट को बताया कि इन नियम के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 बी के तहत वर्णित समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

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