सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल की एक महिला की तरफ से 24 हफ्ते के अपने गर्भ को गिराने की इजाजत मांगने की गुहार वाली याचिका दायर की गई। जिस पर सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार ने कोर्ट में बताया कि उन्होंने इसके लिए 7 डॉक्टरों की एक टीम का गठन किया है, जो ये देखेगी कि क्या महिला का गर्भपात किया जा सकता है या नहीं।
33 वर्षीय यह महिला कोलकाता की रहने वाली है। सुपी्रम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को 29 जून तक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जाए। वहीं इस मामले पर अगली सुनवाई कोर्ट 29 जून करेगा।
पिछली सुनवाई में महिला की तरफ से पेश हुए वकील ने कोर्ट में कहा था कि महिला के पेट में पल रहे बच्चे के दिल में गड़बड़ी है। महिला ने अपनी याचिका में कहा था काननू 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ को गिराने की इजाजत नहीं देता है। महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि कानून में 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ को गिराने की इजाज नहीं है, ऐसे में वह मानसिक रूप से काफी परेशान है।
याचिका में कहा गया है कि भारत में हर साल 2.6 करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं। लेकिन इनमें से दो-तीन फीसदी भ्रूण में कई तरह की खामियां होती हैं। याचिका में कहा गया है कि सोनोग्राफी की तकनीक से तो कई खमियां 20 हफ्ते से पहले पता चल जाती हैं, लेकिन कई खामियां ऐसी होती हैं जिनका पता 20 हफ्ते के बाद ही चल पाता है।
दरअसल, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग् नेंसी एक्ट 1971 के प्रावधान के अनुसार गर्भधारण के 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं दी जा सकती। लेकिन अधिनियम की धारा पांच में यह प्रावधान है कि अगर गर्भ के कारण मअिहला की जान को खतरा है तो 20 हफ्ते के बाद भी महिला को गर्भपात कराने की इजाजत दी जा सकती है।