भारतीय इतिहास के पन्नों में कई ऐसी दास्तानें दर्ज हैं जिन्हें सुनकर न केवल कलेजे दहल जाते हैं बल्कि उनपर गर्व भी होता है। यूं तो हमें अपने देश और क्रांतिकारियों पर गर्व करने की ढ़ेरों कहानियां मिल जाएगी लेकिन आज हम इन दीवार पर लगी जिन गोलियों की बात करने जा रहे हैं वे अंग्रेजों के जुल्मों की दास्तान आज भी कहते हैं।
इन दीवारों पर अंकित इन गोलियों पर बार करने से पहले हम थोड़ा सा पीछे जाते हैं। बात साल 1919 की है और अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों की गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए रोलेक्ट एक्ट लाया था। रोलेक्ट एक्ट के तहत अंग्रेज सरकार के पास यह ताकत प्राप्त हो गई थी कि वह किसी भी संदिग्ध को गिरप्तार कर बिना ट्रायल के भी जेल में डाल सकती थी।
इसी कड़ी में पंजाब में, दो मशहूर नेताओं डॉक्टर सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को रोलेट ऐक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जिसका देश में काफी विरोध हुआ। लिहाजा अंग्रेजों ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया और सभी सार्वजनिक सभाओं, रैलियों पर रोक लगा दी।
जिसके विरोध में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी पर्व के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में गिरफ्तारी के इसके विरोध में भारी संख्या में लोग एकत्र हुए थे। इस भीड़ और आक्रोश की खास बात यह थी कि इस भीड़ में भारी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल थे।
इस प्रकार अब तो साफ हो गया ये गोलियों कहां की दीवारों पर अंकित हैं? जी हां। जलियांवाला बाग की दीवारों पर। आपको बता दें कि जलियांवाला बाग चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवारें तब भी बनी हुई थी और तब वहां बाहर जाने के लिए सिर्फ एक मुख्य द्वार था और दो-तीन छोटी लेन ही थी। तभी यहां पर ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर यहां 50 बंदूकधारी सिपाहियों के साथ पहुंचे और बिना किसी पूर्व सूचना के गोली चलाने का आदेश दे दिया।
इतिहास के पन्नों में दर्ज इस भयानक नरसंघार में यह फायरिंग 10 मिनट तक चलती रही। इसमें कई बेगुनाहों की जानें गई। लोग जान बचाने के लिए कुएं में कूद गए। मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी थे। लगभग 1650 राउंड की फायरिंग की गई थी।
हालांकि सरकारी आंकड़े में 379 मौत बताई गई जबकि कुछ निजी आंकड़ों में 1 हजार से भी अधिक मौतों की जानकारी दी गई। जहां इस हत्याकांड से देश और दुनिया में भूचाल आ गया। आक्रोश में आए देशवासियों ने बढ़ चढ़कर स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया। रबींद्रनाथ टैगोर ने विरोधस्वरूप अपनी उपाधि लौटा दी। इस घटना की जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया गया।
सरदार ऊधम सिंह ने लिया डायर से बदला
इस घटना के बाद जनरल डायर को निलंबित कर दिया गया। वह वापस ब्रिटेन लौट आया। यहां सरदार ऊधम सिंह ने 13 मार्च 1940 के दिन उसकी हत्या की। ऊधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस हत्याकांड ने तब 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियांवाला बाग पहुंच गए थे।
कांग्रेस पार्टी ने जलियांवाला बाग में स्मारक बनाने के लिए 1920 में एक ट्रस्ट की स्थापना की। 1960 में इस स्मारक का उद्घाटन राजेंद्र प्रसाद ने किया। 1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी। अंग्रेजों ने इसके लिए माफी मांगी थी।
कैसे पहुंचे अमृतसर
अगर आप करीब 100 साल पहले हुए इस भयानक नरसंघार के निशानों को देखना चाहते हैं तो आपको अमृतसर जाना पड़ेगा। राजधानी दिल्ली से अमृतसर की दूरी करीब 450 किमी है और यहां से आप बस या ट्रेन दोनों माध्यम से पहुंच सकते हैं।