पहले एक जमाना हुआ करता था जब दहेज ही शादी की शान हुआ करता था। राजा-महाराजाओं को दहेज में कई विरासते मिल जाया करती थी तो आम लोगों खेत-खलिहान और भी बहुत कुछ। धीरे-धीरे समय बदला और अब डिमांड घर, गाड़ी, सोने-चांदी के हार जैसी चीज़ों पर आकर सिमट गई।
दहेज लेना एक कानूनी अपराध है इस बात को सभी जानते हैं फिर भी अपनी राजी सहमति से लोग आज भी दहेज का लेनदेन करते ही है। दहेज को लेकर बीते सालों में कई मामले सामने आए जो कोर्ट तक भी पहुंचे। हाल ही में कोर्ट ने एक दहेज के आरोपी को बरी किया और कोर्ट ने कहा कि ये मामला दहेज का नहीं है ये जरूरत का है।
बोरीवली मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कहा कि आर्थिक परेशानी की स्थिति में या फिर आवश्यक घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए कैश की मांग करना दहेज के दायरे में नहीं आता है। कोर्ट में आए इस मुकदमें को सबूतों के अभावों में कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा, ’अगर आरोपी ने घरेलू सामान के लिए 5 लाख रुपये मांगे थे, तो भी यह आईपीसी की धारा 498। (महिला के साथ उसके पति और रिश्तेदार द्वारा क्रूरता करना) के दायरे में अवैध मांग नहीं माना जाता।’
कोर्ट ने साथ ही कहा कि कथित क्रूरता के खिलाफ 2 साल बाद एफआईआर दर्ज की गई और इसमें देरी को लेकर कोई जवाब नहीं दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि दहेज निषेध कानून के तहत दहेज उसे कहते हैं जब शादी से पहले या बाद में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसी तरह की संपत्ति या महंगा सामान दिया जाता है या फिर देने पर सहमति बनती है।
कोर्ट ने कहा, ’अभियोजन की तरफ से पेश सबूत से यह साबित नहीं होता कि पति ने दहेज निषेध कानून की धारा-2 के तहत किसी तरह के ’दहेज’ की मांग की थी, उसने सिर्फ कुछ घरेलू जरूरतों को पूरी करने और खाद खरीदने के लिए कैश की मांग की थी।’