यह परंपरा सदियों से चली आ रही है कि मंदिर जलाने से पहले जूते- चप्पल उतारे जाते हैं। लेकिन शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसे ये पता हो कि मंदिर जाने से पहले जूते क्यों उतारे जाते हैं। यह सभ्य समाज की एक कल्पना ही है कि मंदिर जाने से पहले ये नियम बनाया गया है कि जूते उतारे जाएं। लेकिन इसके बारे में ठोस तथ्य किसी के पास भी नहीं हैं। तो आज हम आपको इससे जुड़े कुछ तथ्य बताने जा रहे है।
– जूते और चप्पलों में तमाम प्रकार की धातुओं का इस्तेमाल किया जाता है। यह धातु नकारात्मक ऊर्जा मानी जाती हैं। मंदिर के चारों तरफ ईश्वर का वास माना जाता है। जिसके कारण ये माना जाता है कि इस प्रकार की धतु से जुड़ी चप्पल जूते इत्यादि मंदिर में पहनकर ना जाया जाए, जिससे नकारात्मक प्रभाव बढ़े।
– इसके अलावा एक कारण ये भी है कि मंदिर में गंदगी ना फैले इसलिए जूते चप्पलों को बाहर उतारने का नियम है। एक कारण यह भी है कि जब इंसान जूते चप्पल पहनता है तो वह मानसिक स्तर से एक विशेष प्रकार के एटीट्यूड में होता है। लेकिन हमारे समाज में इंसान को उसके जूते से ही पहचानने का एक कायदा बना हुआ है।
– मंदिर के अंदर अमीर और गरीब आदमी का फर्क मिटाने के लिए भी इस प्रथा को चलाया गया था। ताकि जूते- चप्पल उतारकर हम सहज भाव में मंदिर में भगवान की प्रार्थना कर सकें और खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित कर सकें। यह बात तो शास्त्रों में भी बताई गई है कि मंदिर के अंदर जूते-चप्पल पहनकर ना जाया जाए और भारत का हर इंसान इसका अनुसरण भी करता है।