दार्जिलिंग में इन दिनों आम लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। वहां के हालात बद से बदतर हो रहे हैं। दार्जिलिंग बंद के कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने पश्चिम बंगाल का बंटबारा करके अलग खोरखलैंड राज्य की मांग के लिए अनिश्चित कालीन हड़ताल कर दी है। इसके लिए उन्होंने दार्जिलिंग के सभी स्कूलों को 23 जून को खाली करने का आदेश दिया है, जिसके लिए उन्हें 12 घंटे की छूट दी गई है।
जीजेएम अध्यक्ष विनय तमांग ने बताया कि छात्रों को सिलीगुड़ी और रोंगपो के छात्रों को केवल स्कूल बसों में जाने की इजाजत दी जाएगी। केवल छात्रों को सुरक्षित रूप से जाने की इजाजत दी जाएगी। 128 साल पुराना सेंट जोसफ स्कूल को दार्जिलिंग से सिलीगुड़ी शिफ्ट किया जा रहा है। आपको बता दें कि दार्जिलिंग देश के सबसे पुराने और बेहतरीन बोर्डिंग स्कूलों के लिए जाना जाता है।
स्कूल के एक छात्र थट्टे ने कहा कि हम अंदर कैंपस में सुरक्षित है। पहले जहां हमें एक दिन में एक ही परीक्षा देनी पड़ती थी, वहीं अब स्ट्राइक के चलते हम एक दिन में दो परीक्षाएं देनी पड़ रही हैं। सेंट जोसफ स्कूल के प्रिंसिपल शाजुमान सीके ने कहा कि छात्रों को परिसर में रखने का एक ही मतलब है कि हमें उन्हें अपने कब्जे में रखना होगा। इस बीच गोरखा जनमुक्ति मोर्चा समर्थकों ने गोरखालैंड की मांग के लिए दीवारों पर पोस्टर लगाना शुरू कर दिए हैं।
नहीं ले पा रहे एडमिशन-
बंद के कारण 12वीं पास किए हुए छात्र कहीं बाहर जाकर एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं। एक छात्र ने बताया कि मैंने वेस्ट बंगाल ज्वाइंट एग्जाम पास किया है। हड़ताल के कारण मैं बाहर नहीं जा सकता। यहां तक की नेट सेवा बंद होने के कारण ऑनालाइन आवेदन भी नहीं कर सकता। कोलकाता और सिलीगुड़ी जाने के लिए बसें भी नहीं मिलती। ऐसे में वहां प्रवेश के लिए आवेदन करना बहुत मुश्किल हो रहा है। एक बैठक में जेजीएम ने गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन पर हुए त्रिपक्षीय समझौते से अलग होने का फैसला किया है।
जानिए क्या है पूरा मुद्दा-
दरअसल, पश्चिम बंगाल के पास पहाड़ी इलाके में रह रहे लोगों का मानना है कि उन्हें बंगाली बोलने पर मजबूर न किया जाए। वे पूरी तरह वहां का कल्चर भी नहीं अपानाना चाहते। वे चाहते हैं कि उन्हें खुद की अलग पहचान मिले, इसलिए वे गोरखालैंड को अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं। जीजेएम अमर सिंह का कहना है कि हम अपनी खुद की पहचान के लिए खुद की मातृभूमि चाहते हैं। हालांकि हम अच्छे भारतीय नागरिक हंै, लेकिन हमें आज भी नेपाली ही कहा जाता है। इस कलंक से छुटकारा पाने के लिए हमें लगता है कि हमारे पास अपना अलग राज्य हो।