पितृ पक्ष का अन्तिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है. पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है. इस बार यह 19 सितम्बर को है. . जिस व्यक्ति की तिथि याद ना रहे तब उसके लिए अमावस्या के दिन उसका श्राद्ध करने का विधान होता है.
पितृ पक्ष का महत्त्व
साल में 15 दिन हमारे उन पूर्वजों के नाम होते हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी होती है. इसलिए इन 15 दिन को हम पितृपक्ष के रूप में मनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में हम अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उन्हें तर्पण प्रदान करते हैं. क्योंकि हमारे द्वारा किया गया तर्पण उन्हें मोक्ष प्रदान करता है. और हमारे पितर आशीर्वाद देकर यहां से चले जाते हैं. आप अपने पितरों को दुखी करते हैं तो आपको पितृदोष लगता है. जिसकी वजह से परिवार में कलह, गरीबी, मानसिक तनाव आदि ऐसी समस्याएं होने लगती हैं. जिनकी वजह हमें समझ में नहीं आती.
जब परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है तो जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु होती है उसी तिथि को पितृपक्ष में उस व्यक्ति को तर्पण दिया जाता है. पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्ति करने का पर्व है. इस अवधि में पितृगण अपने परिवार वालों के पास विविध रूपों में मंडराते हैं, और अपने मोक्ष की कामना करते हैं. परिजनों से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देकर हमें अनिष्ट घटनाओं से बचाते हैं. भादो महीने की पूर्णिमा से शुरु होकर अमावस्या तक पितृपक्ष चलते हैं. इन्हें सोलह श्राद्ध भी कहते हैं.
श्राद्ध करने का नियम
श्राद्ध करते समय यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु किसी भी महीने के किसी भी दिन हुई हो तो पितृ पक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए. जैसे कि किसी की मौत कभी भी चतुर्थी तिथि को हुई है तो पितृ पक्ष की चतुर्थी के दिन आपको उस व्यक्ति का श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा हमारे शास्त्रों में कहा गया है.
महालय अमावस्या
कई बार ऐसा होता है कि आपको यह ज्ञात नहीं होता कि हमारे पूर्वजों की मृत्यु किस दिन हुई थी. या फिर कभी एक्सीडेंट की वजह से अचानक मृत्यु हो जाती है. इन सब लोगों को श्राद्ध करने के लिए आपको पितृ पक्ष की अमावस्या का इंतजार करना चाहिए. क्योंकि पितृ पक्ष की अमावस्या का बहुत ही बड़ा महत्व है. इसे सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या कहा जाता है. इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी हमें मृत्यु की तिथि नहीं मालूम होती है. यह श्राद्ध उनको तृप्त करता है. उनके नाम से किसी योग्य पंडित के द्वारा श्राद्ध करवाने से एक और पितृ शांत होते हैं, वहीं दूसरी और आपकी पितृदोष की भी शांति होती है.
पितृ पक्ष में महालय अमावस्या को जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है.
सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितर अपने पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि की आशा से विशेष रूप से आते हैं. यदि उन्हें वहाँ पिण्डदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती तो वे अप्रसन्न होकर चले जाते हैं जिससे आगे चलकर पितृदोष लगता है और इस कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, ऐसा ज्योतिष में माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि हम जो भी श्राद्ध के रूप में अपने पितरों को देते हैं वह किसी न किसी रूप में उस अंश को ग्रहण करने जरूर आते हैं.
आप भी अपने पितरों का श्राद्ध करना भूल गए हों तो आप घबराये नहीं क्योंकि आप महालय अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद ले सकते हैं. हो सके तो उस दिन दान भी अवश्य करें.