सुप्रीम कोर्ट ने आज निजता के अधिकार को लेकर अपना अहम फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है। सुप्रीम कोर्ट नें कहा है कि ये जीने के अधिकार के तहत आता है। राइट टू प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आती है। अब लोगों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली संवैधानिक नौ जजों की पीठ ने ये फैसला सुनाया है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति आर.के. अग्रवाल, न्यायमूर्ति आर.एफ. नरिमन, न्यायमूर्ति ए.एम. सप्रे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं।इससे पहले दो अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है और अब इसके बाद एक अलग बेंच गठित की जाएगी। ये बेंच आधार कार्ड और सोशल मीडिया में दर्ज निजी जानकारियों के डेटा बैंक के बारे में फैसला लेगी। मतलब साफ है कि शीर्ष अदालत के इस फैसले का व्यापक असर होगा।
केंद्र सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस मसले पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा था। केंद्र का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है। तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को ये बताया था कि आम लोगों के डेटा प्रोटेक्शन के लिए कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में दस लोगों की कमेटी का गठन कर दिया है। उन्होंने कोर्ट को बताया है कि कमेटी में UIDAI के सीईओ को भी रखा गया है।उल्लेखनीय है कि आधार योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील है कि बायोमीट्रिक डाटा और सूचनाएं एकत्र करने से उनके निजता के अधिकार का हनन होता है।