एक तरफ जहां लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, आर्मी के जवानों के बारें में कुछ भी कहते फिरते हैं, वहीं दूसरी ओर कारगिल के इस जवान की शहादत को देखकर शायद आपको यकीन हो जाए कि देश के लिए शहीद होना कितनी बड़ी कुर्बानी है। ये हम तो नहीं जान सकते कि देश के लिए कुर्बान होने वाले उस जवान के माँ-बाप पर क्या बीतती होगी।
जरा सोचिए क्या बीतती होगी उस माँ पर जिसके सामने एक छोटी सी खरोंच लग जाने पर उसका रोम-रोम सिहर जाता था। जरा सोचिए क्या बीतती होगी उस पिता पर जब उसके बेटे की एक उदासी के कारण वो सारा जहां अपने सिर पर उठा लेता था। अपनी औलाद की एक छोटी सी चोट से परेशान होने वाले उन मां-बाप के सामने जब खून से सनी अपने बेटे की लाश आती है तो उनका क्या हाल होता है ये दर्द तो शायद वे ही मां-बाप जानते हैं जिन्होने अपने बेटे को इन जंग में खोया है। भले ही वे ऊपरी मन से कह दे कि हमारा बेटा शहीद हुआ है और हमे उस पर गर्व है, लेकिन जमाने की परेशानियों का सामना करते हुए अपना जी जान लगा कर बेटे को जवान करने वाले मां-बाप की अंतरआत्मा ही जाने कि उन्होनें कैसे अपने बेटे को खोया है। इन मां-बाप के लिए अपने बेटे का शहीद होना बहुत ही गर्व की बात है लेकिन हम एक ऐसे बेटे की बात कर रहे हैं जो कारगिल वार में शहीद तो हुआ पर उसे अभी तक कोई सम्मान नहीं मिला। इस शहीद के माता-पिता आज भी इसके सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं कारगिल वार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सौरभ कालिया की।
अपने देश की खातिर कुर्बान हो जाने का जुनून हर किसी में नहीं होता लेकिन सौरभ कालिया इसी जुनून के साथ इंडियन आर्मी में ज्वाइन हुए थे। सौरभ कालिया इंडियन आर्मी में 4-जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे। उन्हें इंडियन आर्मी ज्वाइन किए हुए बस एक ही महीना हुआ था कि उन्हे कारगिल वार में लड़ने का मौका मिला। जिसमें उन्होनें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होनें कारगिल में पाकिस्तानी फौज के नापाक इरादों की सेना को जानकारी दी। सौरभ कालिया की कारगिल में तैनाती के बाद 5 मई 1999 को वह अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ लद्दाख की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया।
22 दिनों तक झेली प्रताड़नाएं
सौरभ कालिया ने पाक अफसरों की खुफिया जानकारी इंडियन आर्मी तक पहुंचाई इस बात का पता पाक अफसरों को भी चल गया था। उन्हें बंदी बनाने के बाद उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया जिसे सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी। ऐसी प्रताड़नाएं दी गई जिसे सुनकर आप का दिल दहल जाएगा। इन्हे पाकिस्तानी सेना ने 22 दिनों तक बंदी बनकर रखा और अमानवीय यातनाएं दी। उनके शरीर पर अफसरों ने गर्म सरिए से दाग कर अपना गुस्सा निकाला। इतना ही नहीं उनकी आंखे भी फोड़ दी गई। उनके शरीर के अंगों को भी काट दिया गया। जब सौरभ का शव मिला तो वह बहुत ही बुरी हालत में था। जिसे देखकर उनके साथ हुई यातनाओं का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।
ठोस सबूत के बावजूद शांत है सरकार
ये मामला तब प्रकाश में आया जब एक पाकिस्तानी सैनिक ने ऐसी नृशंसता की बात को स्वीकार किया था। ठोस प्रमाण के बावजूद सरकार आज तक शांत है और यह दुःख की बात है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने विपक्ष में रहते हुए इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन सत्ता में रहने पर उनकी राजनीति व कार्यनीति में अंतर साफ नज़र आता है।
पिता की आत्मा से निकले ये अल्फाज़
17 साल पहले अपने 23 साल के बेटे कैप्टन सौरभ कालिया को देश के लिए कुर्बान करने वाले माता-पिता अब न्याय की आस में बची हुई जिंदगी काट रहे हैं। उनके पिता डॉ. एन. के. कालिया रूंधे गले से कहते हैं ‘‘अब मैं 68 साल का हो गया हूँ। हमारी लड़ाई पैसे के लिए नहीं है, ये लड़ाई है सम्मान की। मेरा बेटा कारगिल युद्ध का पहला शहीद था। उसके साथ और पांच लोग थे, ये लड़ाई उनके सम्मान की है। हमारे पड़ोसी से जब हमारी नहीं बनती तो कुछ दिन एडजस्ट करने के बाद हम अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। मुझे समझ नहीं आता कि हम पाकिस्तान से क्यो डरते हैं, हम क्यों कभी दोस्ताना मैच खेलते है और कभी उनके कलाकारों को सम्मानित करते हैं जबकि उन्होनें एक सोल्ज़र जो कि युद्धबंदी था उसका भी सम्मान न किया। देखते हैं कि अब ये सरकार क्या करती हैं।’’
सौरभ ने अपनी जिंदगी इसलिए कुर्बान कर दी ताकि हम चैन की नींद सो सकें और हमारा कल सुरक्षित हो। लेकिन 22 दिनों की भीषण यातना सहने के बाद जान गंवा देने वाले देश के इस सपूत को अपने ही देश से न्याय का इंतजार है।